Wednesday, June 21, 2023

क्या है?

तुम तो कहते थे,

सब टूटा है, सब छूट गया,

तो फिर ये तुम्हारे,

सीने से लगा क्या है?


क्यों इतने बेचैन हो?

ये तुमको हुआ क्या है?


वो तो बस कह देता है,

अपने दिल की बात,

इसमें बुरा क्या है..??


ऐसा नहीं है कि,

ये रास्ता उधर नही जाता..!


मैं उसकी गली से,

गुजरता हूं रोज लेकिन,

अब उसके घर नहीं जाता..!


वो जब कर रहा था,

मेरी लंबी उम्र की दुआएं,

एक मैं, जो कहा करता था,

ये शख्स क्यों मर नही जाता..!

क्या चाहिए क्या नहीं?

मुझ से होकर,

इज्जत चाहिए,

दाद चाहिए..!


बस मेरे मुंह में

ज़बान नहीं चाहिए..!!


उसे मुझसे सब चाहिए,

बस एहसान नहीं चाहिए..!


मुझे ज़र्रा बना कर,

वो आसमान होना चाहता है,

लेकिन उसे अंतस की,

पहचान नहीं चाहिए..!


बड़ा अजीब सा शख्स है,

गत्ते से दिल लगाए बैठा है,

भीतर का कीमती,

सामान नहीं चाहिए..!!


सब सजदे उसके,

बनावटी हैं..!!

दिखावे की इबादतें उसकी,

उसे घर में अपने,

ईमान नहीं चाहिए..!


मेरा मुर्दा जिस्म ही अब ,

शायद रास आए उसे..!

इस जिस्म में उसे,

जान नही चाहिए.!!

मैं

ये जान कर हर शाम,

और गुनाह करता है वो,

के सुबह सुबह,

माफ कर दूंगा मैं..!


जिस बिस्तर पे,

कत्ल हुआ रात मेरा,

अपने ही हाथों,

साफ़ कर दूंगा मैं..!!


हमारी भी कहानी में,

नया कुछ नही,

उसके हाथ में,

हर रात खंजर होता है,

और साथ में मैं..!!


कहानी खत्म और हाथ,

मेरे कुछ आया ही नहीं,

उसके हाथ सब आया,

और साथ में मैं।

सच बोला है उसने

पहली दफा बोला है उसने,

मैं सहम गया हूं,

सच बोला है उसने..!


जिन सच्चाइयों पे,

मेंने पर्दा डाल रखा था,

उनका पुलिंदा,

खोला है उसने..!!


मैं अपने वजूद की,

ओट ले रहा हूं,

आख़िर ऐसा भी क्या,

बोला है उसने?


मैं हर शख्स पे,

इल्ज़ाम लगाता रहा,

क्या खुद को भी,

टटोला है मैंने?

उस से

फिर भी जुदा हो,

बहुत फर्क है,

तोहमत लगाना कोई तुमसे सीखे

इल्ज़ाम लगाना उस से..!!


दिमाग लगा सको,

तो बताना हमे,

पहले दिल लगाना उस से..!!


उसी ने राख किया है,

कोई कैसे बेहतर जानेगा,

मेरा ठिकाना उस से..!!


वो खुदा बन गया है,

दगा दे दे कर,

छुपना नामुमकिन है,

मत बनाना कोई बहाना उस से..!!


कायनात के,

इस पार भी है उस पार भी,

सीख लेना,

हद के पर जाना उस से..!!


मंदिर मसीती, काबे मक्के,

गिरजे रंगशाला उसकी,

मयखाना उस से..!!


सुना है, मसीहा है,

कभी मिलाना उस से..!!

शतरंज

हमारी ज़ुबानों में ज़माने का,

फर्क था,

बातों को, इशारों में,

समझाया हमने...!


बताओ चालों से,

कैसे बचते?

जब शतरंज पे,

घर बनाया हमने..!


पलट पलट के,

कभी भी उलझ पड़ता है,

और कहता है,

बात को बढ़ाया हमने..!


खुद के जिंदा होने का,

एहसास दिलाया हमने..!

किसी से ख़त भेजा,

उसे बुलाया हमने..!!


फिर सिरहाने,

खड़ा किया,

और खुद को,

दफनाया हमने..!!


सफ्ह में सबसे आगे बढ़,

उसने दाद दी, मदद दी,

अपनी बर्बादी का,

जब जश्न मनाया हमने..!

ज़मी ऐ हिन्द - आजकल

यहां अश्क चाट के,

सब जिंदा हैं इक दूजे के,

वतन हुआ या,

रेतीली फसीलों में,

कैद जैसे शहर कोई..?


मुरझा के गिर पड़े,

शाखों से परिंदे तक,

वो आया तो ऐसे,

जहरीली जैसे लहर कोई..!!


मसीहा मान के उस को,

लोगों ने पलकों पे बिठाया,

वो लगा दामन ए मुल्क पे,

जैसे बुरी नजर कोई..!!


न पांव उठा सकता है न हाथ,

न आवाज़ उठा सकता है,

न सिर कोई..!

लगता नही के अब बचा है,

जिंदा यहां बशर कोई..!!


लहरों के निशान रेत पे,

आवाम के माजी का,

अक्स दिखा रहे हैं,

बहती थी इस जमी पे कभी 

मुहब्बत की नहर कोई..!!


लौट के कभी आयेंगे,

तो हिंद की जमी पे,

तलाशेंगे परिंदे कल के, 

और कहेंगे खुद से कराह कर,

मुल्क ए हिंद में भी था,

जम्हूरियत का शजर कोई..!!

आइना समझ ले मुझे

 भला यह कैसी,

फरियाद करता हूं?

तू सामने होता है,

और तुझे याद करता हूं..!


यह कैसा सितम है

यह कैसे कत्ल किया है तूने?

मुझ में और मिट्टी में फर्क

कैसे खत्म किया है तूने?


समझ नहीं आता

इश्क हूं कि समझौता हूं मैं?

तेरे आगोश में होता हूं,

तो क्यों दर्द में होता हूं मैं?


चल आईना समझ ले,

तोड़ दे मुझे,

बंदिश नहीं हूं,

मजबूरी भी नहीं

छोड़ दे मुझे..!!

ठिकाने लगा है वो

 न जाने कितनी और,

सच्चाइयों से महरूम रहता,

ध्यान न देता के,

नजरें चुराने लगा है वो


बिस्तर पे सुबह,

सलवटें नही मिलती अब

बाहर कहीं तो

रात जाने लगा है वो


वो सुना देता है,

मैं मान जाता हूं

कैसे रोज नए,

बहाने बनाने लगा है वो


मुझसे दगा कर 

दर दर की ठोकरें खा रहा है

अब कहीं जा के

ठिकाने लगा है वो


संवार रहे थे

जो दो जहां उसका 

उन्ही हाथों से,

दामन बचाने लगा है वो


अब मान लूंगा ये बात

हां बदल गया वो

मुझे दर्द में देखा है

मुस्कुराने लगा है वो

रिश्ता

 उस से,

राब्ता हो गया,

फिर पहली दफा रात को,

मैं अपने घर जा के सो गया..!!


तेरा नाखून टूटा था,

शहर में चर्चा था,

के मुझे कुछ हो गया..!!


मंदिर, मस्जिद, शिवालों से,

हार कर आया,

मेरी गोद में,

वो अपना दर्द रो गया..!!


इक ख़ज़ाने का आज पता मिला मुझे,

मेरी सांसों के मोतियों में..!

अपनी सांसों का धागा पिरो गया.!


पहले जैसा,

कोई भी नही लौटा,

उसकी गली में जो गया..!!

इश्क के असर दोगले होते हैं

 पंछियों का मौसम बीत जाता है,

फिर बचा इक बूढ़ा दरख़्त होता है,

उसपे कुछ पुराने घोंसले होते हैं..!


लोग मुरझा जाते हैं,

जां सूख जाती है, मगर,

जिस्म हरा भरा रहता है,

इश्क के असर बड़े दोगले होते हैं..!


वो कहीं नहीं पहुंचते, जो,

पतवारों पे खड़े होते हैं..!!

घड़ी की सुइयों संग चले होते हैं।


खुद की हार में जो,

अपनों की जीत देख लें,

वो लोग बड़े भले होते हैं..!

मगर इश्क के असर दोगले होते हैं..!!


गया कम था लौटा बहुत है

 जाने किस के आगोश से

निकल के आता है

लेकिन मेरे गले लग के

रोता बहुत है..!!


कुछ खास ख्वाब देखता है

वो आजकल

सुना है सोता बहुत है


में तुम्हे भी समझाऊं

ये अब मुमकिन नहीं

मेरे दिल से ही मेरा

समझौता बहुत है


मेरे हाथ में

उसकी हथेली जरा सी थी

वो गया कम था 

लौटा बहुत है


तुम्हारी सब खयानतों को

माफ कर दिया मैंने

मेरा दिल छोटा बहुत है


मेरी असली शक्ल देखने की

तुम्हारी ये ज़िद बेमानी है

मुखौटा देख लो, बहुत है


दोस्त?

 वहीं घाव लिखते हो?

वहीं खंजर लिखते हो?

वहीं इक हाथ लिखते हो दोस्त?

कैसे इतने कातिल?

अल्फाज लिखते हो दोस्त?


वफा के तगादों से,

तुमने ही जान ली,

तुम ही हमे

दगाबाज लिखते हो दोस्त?


स्याही से लहू की,

महक आती है

कैसे जुल्म का नगमा लिखते हो?

कैसे सितम का साज लिखते हो दोस्त?

जिंदगी अभी आधी हुई

 रूठ के गया,

तो हर दफा लौट आऊंगा

ये जरूरी नहीं.......


मेरे तुम्हारे बीच

लिबास आ गए हैं

कैसे कहते हो?

कोई दूरी नही ............


मुहब्बत हो तुम मेरी

बर्दाश्त कर लेता हूं

झुका दे मुझे वरना

ऐसी कोई मजबूरी नही.........


तंग आ गया तो,

छोड़ दूंगा तुझे

जिंदगी अभी आधी हुई

जाया पूरी नहीं.........


Monday, September 27, 2021

कहां तक जाओगे 2

ये रिश्तों की पोटली,
ये नातों के तार,
ये उम्मीदों के महल
ये चाहतों के दयार

सम्हाले हुए हैं
हमने जैसे तैसे..!

ये तुम्हारी हसरतों के पुल
ये तुम्हारी उलझनों के बाम
ये चाहते बहुत सी
ये ख्वाहिशें तमाम

ये खयालों के दरख़्त
ये शिकवों के दरिया
ये उलझने तुम्हारी
ये शिकायतों का ज़रिया

सब सम्हाल रखा है हमने
इक अनचाही गांठ बन कर
वही गांठ जो खुल गई
तो सब बह जाएगा
फिसल जायेगा वक्त,
तुम्हारी मुट्ठी से,
सब धरा का धरा रह जायेगा.!

किसको कोसोगे?
क्या पछताओगे?
जब जहां चुक जायेगा?
बताओ, कहां जाओगे?

Sunday, September 5, 2021

कहां तक जाओगे 1

किस से उलझोगे,
कहां सर टकराओगे,
अकेले चल तो दिए हो,
सोचा है कहां तक जाओगे?

चीखें पलट कर सुनाई देंगी,
जब भी मुस्कुराओगे,
जिस फैसले पे नाज़ है,
कल उसी पे पछताओगे,

ये जुल्फें, पलकें, शोखियां,
सब महज़ छलावे हैं,
इन से दिल लगाओगे?

दिखा दिया है,
तुमने रास्ता जिसे बाहर का,
उसे दस्तरख्वान पे बिठाओगे..!

जबरन अल्फाज,
सजा देती है जुबां पे,
तुम भी जिंदगी का ही,
नगमा गुनगुनाओगे..!!

अकेले चल तो दिए हो,
सोचा है कहां तक जाओगे?

दामन निचोड़ दिया मैने।

तकलीफ होती है
सांस आने में,

ये सुन के उसे,
बाहों में भरना छोड़ दिया मैंने

उसका अक्स झलक रहा था,
आइना तोड़ दिया मैने

उसके अश्कों के दाग़ों का,
उधार रह गया था बाकी,
दामन निचोड़ दिया मैने..!

सागर उफन जायेगा,
घबरा के दरिया ही,
मोड़ दिया मैने..!!

सिफर हो गया सौदा,
सब पाना था,
तो सब छोड़ दिया मैने..!!

अब छा रहा है वो,
सब आसमान बन कर,
जब खुद को दो गज में,
सिकोड़ दिया मैने..!

दाग़ बाकी रह गया था,
दामन निचोड़ दिया मैने।

Monday, July 12, 2021

झूठे हैं लोग

दिल पे रख लेते हैं पत्थर,
हंस लेते हैं
जो अंदर से टूटे हैं लोग।

मुस्कुराहटों के मुखौटे पहने,
बिलखते, झूठे हैं लोग।

ये अदाओं की कारीगरी,
सब को बराबर आती है,
अनूठे हैं लोग।

बाहर कुछ और,
अंदर कुछ और,
झूठे हैं लोग।

मेरे जनाजे पे,
छाई है खामोशी,
शायद रूठे हैं लोग।

न जाने कहां गए,
वक्त के साथ साथ
बहुत छूटे हैं लोग।

कुछ डूब गए
दरिया - ए - गम में,
कुछ अछूते हैं लोग।

जान गए कीमत,
बाद मुद्दत के,
जनाजा निकलने को है,
अब मुझे छूते हैं लोग।

कैसे मुस्कुरा लेते हैं
रोते रोते,
बहुत झूठे हैं लोग।

Monday, April 19, 2021

बातें कच्ची मिट्टी

खलाओं का अदना सा,
बाशिंदा है वो,
लेकिन मर्तबा उसे,
आसमानी चाहिए..!!

रिश्तों में जिसको,
रत्ती भर भरोसा नही,
उसे भी हर रिश्ता,
खानदानी चाहिए..!!

बातें तो कच्ची मिट्टी होती हैं,
बिगाड़ तो कोई भी सकता है,
इक हुनर आना जरूरी है,
बात बनानी चाहिए..!

सूरत पे मिट गया था,
बड़ी जल्दबाजी में था,
पहले उसे मेरी,
सीरत आज़मानी चाहिए..!!

वो मांग रहा है,
कुछ भी अना सना,
हर चीज अब उसे,
मनमानी चाहिए..!!

मुझको आशनाई में,
शगल से परहेज़ है,
मुहब्बत में कोई,
खुद सा सानी चाहिए..!!

इश्क की कोई,
लिखा पढ़ी नहीं होती,
बस तेरा वादा एक,
मुंहजबानी चाहिए.!!

बचपन की मोहब्बत का,
वो एक पल लौटा दो,
ले जाओ सारी मेरी,
जिसको नौजवानी चाहिए..!!

रहूं तो सब के लबों पर,
मुस्कान बन कर,
जब न रहूं तो,
हर आंख में पानी चाहिए..!!

ऐ खुदा बोल दे तू,
फरिश्तों को अपने
गर मेरा दिल टूटे तो फिर,
जान भी जानी चाहिए..!

सब उठेंगे रोज़ ए हश्र में,
मैं सोता रहूंगा लेकिन,
तेरा इश्क मुझसे सच्चा था,
यही इक बदगुमानी चाहिए.!!

Wednesday, March 10, 2021

नया बहाना


इधर से खतों के सिलसिले रहना,
उधर से, जवाबों का ना आना..। 

तुम मुकर रहे हो, वादों से अपने,
हम भी ढूंढ रहें हैं, कोई नया बहाना..। 

उम्मीदों के घर ने, पते बदल लिए हैं,
तुम भी अब, इस तरफ नहीं आना..।

तंग आ गया हूँ, इस रिश्ते से मैं अब,
कभी एहसान, तो कभी हक जाताना..।

फलक पे खोल के, रख दो झूठ का पुलिंदा,
हर इक राज हम, फिर भी अंदर रखेंगे..।

सहरा रखो, रेत रखो, प्यासा रखो,
हम फिर भी दरम्या, समंदर रखेंगे..।

जो दिल कहे, सब कर लेना,
वक़्त का लेकिन, एहतराम करना..। 

दुश्मन भी मजबूरन करे तारीफ,
कुछ ऐसा काम करना..। 

जाम और साकी का, इंतजाम करना..।
देखो हमारे साथ, आएगा सैलाब ए अश्क भी,
तो कुछ रुमालो का, भी इंतजाम करना..।

नजरंदाजी, तुम्हारी ना होती तो,
मरहम, लगा रहे होते आज वो,
जख्म पे नमक छिड़कने वालों का,
अब पहले एहतराम करना..। 

मैं रोया नहीं, पत्थर ना समझो,
आँखों के सूखे दरिया को,
हमारी नजर से देखने का काम करना..। 

बाजी लगाओ, इश्क की हमसे,
हिजर मे हम, जिस्म को जमी कर देंगे,
गर तुम रूह को आसमान करना..।

मेरे वजूद के चमन मे,
रिश्तों के दरख्त उगते हैं,
हसरतें मेरी रूहानी हैं तो,
मुझ पे अपने पैसे जाया मत करना..। 

कब बीत जाते हैं सब मौसम,
परिंदों को पता नहीं चलता,
वक़्त रहते लौट आना घर,
उम्र परदेस मे जाया मत करना..।


मुकर - ignore/avoid
फलक - sky
पुलिंदा - bag
सहरा - desert
दरम्या - in middle
एहतराम - respect
साकी - bartender
सैलाब ए अश्क - flood of tears
नजरंदाजी - ignorance
मरहम - ointment
हिजर - separation
वजूद - existance
चमन - garden/area/environment
दरख्त - tree/plants
हसरतें - desires
रूहानी - spiritual

Sunday, March 7, 2021

शिकस्त

 मुझे अंजाम मे,

“हमारी” शिकस्त दिख रही है,

तो ज़रा बता हमारा....

आगाज़ क्या है..........?

 

खिलखिलाहट में,

अब भी वो मोती हैं,

पर नज़रें चुराने का अंदाज़ जुदा है,

सब न बता, पर इतना तो बता,

आखिर ये अंदाज़ क्या है......?

 

हमराज़ मान के तुझको,

बाँट ली जिन्दगी अपनी,

बस इतना बता.......

तेरे सीने दबा वो एक,

राज़ क्या है.........?

 

मेरा दर्द न पंहुचा,

मेरी आह न पहुंची तुझ तक,

तो वो चीख ही क्या,

वो आवाज़ क्या है.........?

 

जो है ये सब तो देख,

मैं अपनी शामों को,

पैमानों में घोल के पी रहा हूँ...!

 

मोहब्ब्बत में तो,

सब ही होते हैं बर्बाद,

क्या फ़कीर और,

फिर सरताज क्या है.........?

 

 

हद

कभी तूने सुना,

कभी अनसुना कर दिया,

हाले दिल मैंने यूं,

बयां किया तो बहुत.......

 

जान निकल रही है,

जब जर्रा जर्रा,

जिंदगी की अहमियत,

खुद की कीमत, समझा हूँ,

यूं मैं जिया तो बहुत.....

 

प्यास प्यार की थी,

पर हिस्से अश्क ही पड़े मेरे,

घूँट घूँट, मैंने दर्द,

यूं पिया तो बहुत............

 

तेरा एहसान,

मेरे हर करम पे अब भी भारी है,

फ़र्ज़ अदा मैंने किया तो बहुत.......

 

उम्र कम पड रही है,

और तेरे साथ के पल,

नाकाफी हैं,

यूं जिन्दगी ने जीने की खातिर,

दिया तो बहुत.................

 

घुट घुट के जीना क्या होता है,

तुमने सिखा दिया,

मैंने भी हर,

सफ्हे पे गौर किया तो बहुत......

 

घूँट घूँट यूं दर्द,

मैंने पिया तो बहुत...

बहुत कुछ बाकी रहा फिर भी,

तेरे साथ मैं, यूं जिया तो बहुत............

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Saturday, October 31, 2020

आइना

अक्सर देखता हूं उसे,
खुद को आईने में देखते हुए,
संवरते हुए निखरते हुए..!!

बगाहे आज खुद को,
देख लिया गौर से..!!

बढ़ी दाढ़ी, उलझे बाल,
चेहरे पे शिकन, माथे पे सवाल..!
अधपकी मूंछें, अजीब सा हाल..!!

बड़ा सदमा सा लगा है,
सोच में हूं, क्या ये में वही हूं..!!
कुछ साल पहले था जो..!!

क्योंकि वो वहीं है,
मैं वो नहीं हूं...!!

ये साजिशें आइनों की हैं,
इस देश में मर्द,
अक्सर आइना नहीं देखते...!!

Thursday, October 29, 2020

लोकतंत्र

झांझ मंजीरे की तानों में,
ईदों में, होली दीवाली, गुलालों में,
ढोलक की थापों में, बिरहा आलापों में,
लोकतंत्र बैठता था चौपालों में....!

जनमानस के सदभाव में,
नफ़रत के अभाव में
विकास के उजालों में,
लोकतंत्र संसद में बैठता था,
विपक्ष के सवालों में....!!

हक लूटे, इमदाद लूटी,
घर लूटे, जायदाद लूटी
अब संसदीय गिद्धों की नजर है,
गरीब के निवालों पे...!!!

निचोड़ डाली,
आर्यावर्त की आबरू,
जला दीं फसलें,
अमन ओ आजादी की,
बस कुछ ही सालों में..!!!!

आज मोमबत्तियां लिए,
सड़कों पे खड़ा, मजबूर वो,
जो लोकतंत्र बैठता था संसद में,
विपक्ष के सवालों में..!!!!!


Monday, February 17, 2020

खुशबू

सुबह उठ कर गीले तकिये को देखा,
तो देर तक सोचता रहा....... !

ये शबनम फलक से आई,
के मेरी आंखों से......?


क्या गुलों ने कर ली खुदकुशी.......?
जो बिखरी पड़ी है फिजा भर में खुशबू..!

फिर कभी सोचता हूँ,
शायद आई तेरी साँसों से.....!

उधेड़बुन

बोलती बहुत है,
ख़ामोश भी बहुत है....

ख़ुशी है बेपनाह,
फिर तन्हाई को तेरा,
अफ़सोस भी बहुत है....

ज़िंदगी,
बड़ा एहसान मानती है तेरा,
पर ये फरामोश भी बहुत है...

हाँ,
हारी भी है बाज़ी-ऐ -रूह,
पर बचा जोश भी बहुत है...

लड़खड़ाई है, बाद फुरकत,
अब दगाओं का, होश भी बहुत है......

उधर,
पाकीज़गी भी दिल की बेहिसाब,
मुब्तिला गुनाहों में भी इधर बहुत है.....

इधर
मचलती है वही आरज़ू दामन में,
तेरे रूबरू जो सरगोश बहुत है....

पेशानी पे,
कालिख बन भी लगी है,
किस्मत सफेदपोश भी बहुत है...

अंतस,
आलम है लम्हो का, बेतरतीब,
इधर दर्द-रोज़ बहुत है....

Saturday, November 30, 2019

कोई..!

वो जो लाख सितारों को भी,
"एक" गिनता है, उसकी,
तन्हाई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

इक कतरे से जो समंदर हो गया,
उसकी,
गहराई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

ख़ाक कर दिया खुद जहां अपना,
बेहिसी, बेखयाली, बदहाली का,
उसकी अंदाज़ा लगाए कोई....!

बेवफाई तक से मोहब्बत हुई जिसे,
उसकी,
आशनाई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

जन्नत ओ खुदा से भी नफरत हो गई जिसे,
उसकी,
रुसवाई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

ज़माना तो सारा खिलाफ निकला,
कोई एक अपना,
कभी तो कहलाए कोई..!

भटका है हां वो बहुत,
बस फिकरे ही कसने?
या राह भी बताए कोई..?

हां बदकिस्मती हमनवा हुई मुद्दतों,
काश, खुशकिस्मती भी,
उसका दरवाजा खटखटाए कोई...!!

ग़मजदा उम्र बीती सारी,
खुशनुमा ग़ज़ल इक,
उसकी खातिर गुनगुनाए कोई..!!

"अंतस" को भी मिल जाए मर्तबा,
काश कोई राह से भटक जाए,
मुझे भी सुबह का भूला मिल जाए कोई..!

Monday, November 4, 2019

अब जब भी शुबहा हो..!

मेरी अजीब हरकतों,
उलटे पुलटे जवाबों से,
आजिज़ आई मेरी जान...।

एक खट्टी सी बात,
और कसैली सी,
रात के बाद.....।

सुबह
जब उनींदी पलकों को,
क़यामत बना कर.....।

अधूरे ख्वाब,
अपनी अंगड़ाई में झटक कर
तकिये पे बिखेर दे।

तो ऐ सुबह उसके गाल पर,
एक नरम सा बोसा देना...।

सुना है मौसम सर्द है
तो ऐ ओस की बूंदों,

जाओ...

उसके रुखसार पे,
गुलाबों की ताज़गी मल के...
मेरी निगाह से जी भर देखना...।

जब वो शर्मा कर,
हथेलियों में ढक ले अपना चेहरा...
तो, ऐ हवा सुन...!

मत छेड़ना उसे।
उसकी नाक लाल हो जाती है।

बेशक उसका गुस्सा काफूर हो जाये।
पर फिर भी,

मेरी धड़कनो,
जाओ उसको कहना

तुम तो खफा हो कर सोती रही
मैं रात भर जागता रहा....!

पर सुबह
वैसा ही मिलूंगा
जैसा मैं उसे मिला था।
सबसे पहली बार...!!



मैं कल से आज तक

लबादा ओढ़ के चलता हूँ
मुस्कुराहटों का
कहीं किसी को हालत मेरी
'उसकी' कारगुज़ारी न लगे,

बंटा देता हूँ हाथ
के किसी को भी 
उसका दर्द भारी न लगे,

लाओ दे दो अपनी मुश्किल
और मैं अपना लूं इस तरह
कि अब तुम्हारी न लगे,

कोई हारा है इस कदर
की मौत का गुलाम है, फिर भी..!
कटी है जिसकी सारी जुए में
वो ज़िन्दगी का जुआरी न लगे..!

दुआ में अब यही
की दिल मिले सबको
बस किसी को दिल की
बीमारी न लगे..!

देखा न गया

मसाजिदों में फेक
"जानवर" की लाश
कर दिया जहाँ को
लपटों के हवाले
दरिंदो से इंसानियत
खुश देखी न गयी.....!!

तोड़ दिया दम
दौरान-ए-जचगी
एक गरीब मा ने..!
रईसों के बनाए,
इक गरीब हस्पताल के आगे..!!

झक कोट वाले दुनियावी
खुदाओं में फिर
सूरत-ए-खुदा देखी न गई।

दौड़ती रही अंधी दुनिया
भरी दोपहर सड़क किनारे
और लाश पर दुधमुँहा
तड़पता रहा मासूम..!!

बैठ गई गाय
बच्चे के मुह थन लगा के
उस से जब देखा न गया।

दर-ए-मसाजिद मिली
कि पण्डे के हाथ,
बाहर गिरजे के पाई
कि लंगर में छक ली

रोटी थी
मुझसे उसका मज़हब देखा न गया...!

मौसम सा सनम

जानता हूँ, आँसुओं की ख़ास,
क़ीमत नहीं कोई,
तो मुस्कुराता रहा.....!!!

कराहना मेरा,
क्या भाता किसी को?
दर्द रहा तो भी,
गुनगुनाता रहा..!!!!

वो घर जला गए मेरा,
अपने उजाले की ख़ातिर,

पर हमारी उम्मीद का,
एक दिया,
ना जाने कैसे,
टिमटिमाता रहा...!!!

मातमपुर्सी की आवाज़ें,
यूँ तो हमें अपने गुज़रने की,
ख़बर दे गयीं,

उस कफ़न को,
कुछ और ही मुहब्बत थी,
के पूरा मरने ना दिया,

पैरों से लग के,
ना जाने क्यों,
फड़फड़ाता रहा...!!!

ना ख़ुद को क़रार आया उसे,
ना हमे ही मुकम्मल होने दिया,
सनम जो मौसम सा हुआ,
आता रहा जाता रहा...!!

फिरकी

कम्बख्त इश्क ने,
बेवक़्त कत्ल कर दिया हमे,
वरना लकीर-ऐ-उम्र,
बड़ी लंबी थी हमारी....!!

उसकी मोहब्बत में,
पलट न सके बाज़ी ये,
ज़िन्दगी बेहतर भी,
हो सकती थी हमारी....!

हश्र दर्द-ओ-ग़म से,
सराबोर था ये सारा..!!
उतरी जब इश्क की खुमारी..!

क्या कमाल का वक़्त रहा?
बीमारी को इलाज समझते रहे,
ज़िंदगी को समझा बीमारी..!!

गुमां था के हमने वक़्त को,
तिगनी नचाई,
क्या पता था, वक़्त ने,
ली फिरकी हमारी...!

क्यों है?


हर किसी को मुझसे,
इतनी उम्मीद क्यों है,

मैं ही मानूं, मैं ही समझूं,
सिर्फ इतना ही नसीब क्यों है?

गर खुशी भी है वज़ूद में,
तो सिर्फ दर्द करीब क्यों है..?

ये टूट टूट कर आते हैं पल,
क्यों चिंदी चिंदी राहतों के,
उलट इसके, मुश्किलों में,
ये मुसलसल तरतीब क्यों है?

कुर्बान कर के खुद को भी,
मर्तबा हासिल न हुआ,
अंतस इतना बदनसीब क्यों है?

न वक़्त समझ आये न सनम,
ये लम्हा इतना अजीब क्यों है?

दावा


उनका दावा है,
बदल गए हैं हम..!!

खबर नही उनको,
भीतर से मर गए हैं हम..!!

कितना वक़्त दिया,
उनको बस इतनी फिक्र..!!
कहाँ इसकी के,
किन हालात से गुज़र गए हैं हम..?

ये दो वजहों ने सब बर्बाद किया,
एक नासमझी, एक वहम..!!

उनकी नज़र बस,
उनके खयाल कीमती..।
खामखां हमारा वजूद,
और खामखां हम..!!

लिए सूखी आंखों में अश्क़ नम,
वाहियात निकला ये जनम..!

गुल ओ किमाम वजूद

इस उम्मीद से कि,
पानी छन्न से टूट जाएगा..!
वो सैकड़ों पत्थर,
तालाब में फेकता रहा..!!

गर्माहट-ऐ-इश्क़ में कहाँ,
दिलचस्पी थी उसकी..??
वो तो बस मतलब की
रोटियां सेकता रहा..!!

शिद्दतों की गहराई,
बिल्कुल न थी उसमे...!!
आंखों में सागर लिए,
मुड़ चला मैं जब,
वो बस बैठा देखता रहा..!

कहां तो उसने,
अपने अरमानो की,
हर आग ठंडी कर ली..!!
यहां सदियों हमारा ये जिस्म,
बस दहकता रहा..!!

मिटा देने को वजूद बेदर्दी से,
मसल दिया पैरों तले..!
ये कमबख्त,
गुल-ओ-किमाम निकला
बरसों महकता रहा....!!!

वो वर्दियों वाले लोग..!

जाने किस मिट्टी के बने थे,
अंधेरी वतन की रात को,
नई सहर कर गए..!!

वतन वाले सुकूं से पहुंचे घर,
जब शहीद शमशान भी,
रोशन कर गए..!!

आईं जब गोलियों की आवाज़ें,
सफेद कुर्तों वाले, छुप गए,
सबसे पहले डर गए..!!

सिक्केबाज़ों की साजिशों के,
शिकार हैं, जान कर भी,
वो हर हद से गुज़र गए...!!

यहां बदल गए थे घर, और लोग,
जब वो वर्दियों के लोग,
लौट अपने शहर गए..!!

बड़े एहसान फरामोश निकले,
ये ऊंचे लोग, जब आन पड़ी,
चालाकी से मुकर गए..!!

ये फौज़ प्यादों से ज्यादा नहीं,
इन फरामोशों की नजर,

देखी जब हकीकत तो
मेरे खयाल तक ठहर गए..!!

हमारी गफलतों ठीकरे,
खुद ले लिए, आज़ादी,
हर सुबह तुम्हारी नज़र कर गए....!!

जिस्म इक को बचाने की,
जद्दोजहद थी बड़ी,
बच भी गया, बदले में,
लेकिन लाखों सर गए.....!!

शायद दूसरा भी किनारा हो?

सूखे ये वक़्त की नदी
तो दिखे, उस पार,
शायद दूसरा भी किनारा हो..!

इस ढहते वजूद का भी,
कोई तो सहारा हो..!!

हो ना हो वाकई,
चलो कहने को ही हो,
कोई तो हमारा हो..?

ढो लिया मोहब्बत को बहुत,
अब उतार दें ये बोझ दिल से,
हुक्काम ए इश्क का
फकत एक इशारा हो...!!

हम तो रोज़ ही रुसवा हैं,
सुकूं अफ्तारी भी हो थोड़ी..!
हां, शर्मिंदगी का तुम्हारी भी,
कभी महफ़िल में कोई नजारा हो..?

तुम भरे जाओ जाम पे जाम,
और गम ए सागर हम पीते रहे,
फिर हलक भी सूखा ही रहा..!
भला यूं कैसे गुजारा हो..?

माना ये सब दरम्यान है,
पर भला हम कहां हैं इसमें?
के इब्तेदा भी तुम्हारी,
अंजाम भी तुम्हारा हो..?

नागवार लगी हमें उम्र सारी,
हमने कुछ यूं गुज़ारी....!
गोया कोई एहसान उतारा हो...!!

पड़ा मिले राह में कोई,
तो पहुंचा देना घर तक,
शायद उसको भी,
किसी ने तड़पा के मारा हो..!

क्या है?

बड़ी दिलचस्पी है तुम्हे,
हमारे हाल-ओ-हालात में..!!
वजह क्या है..?

सब तो खोल दिए हैं,
बंधन के खयाल में क्यों हो,
बची अब गिरह क्या है..?

तुमने तो मिलन के,
जलसों में यकीं रखा है,
फिर एक ये विरह क्या है..??

खो दिया है गर,
अम्न- ओ- सूकूं,
माने हार गए,
फिर भी दामन में लिपटी
वो फतेह सी क्या है..?

कहां तो कोई कशिश बाकी न थी,
फिर ये शिद्दत ये जुनून,
बेतरह क्या है..???

जुदा जब हो ही चुके,
तो ये कुछ ज़रा सा,
जुड़ा क्या है......??

Thursday, October 17, 2019

किसी तरह

हर चाहने वाला मेरा,
दीदावर है,
किसी न किसी तरह..!!

हां यूं तो बेअसर हूँ,
पर बडा असर है तुझपे,
किसी न किसी तरह...!!

जिंदगी बाकायदा अंधेरी है,
पर जब से तू है, दोपहर है,
किसी न किसी तरह..!!

सिर्फ शाम कहा जाता था मैं,
पर ये कैसे हुआ?
सहर है किसी न किसी तरह?

पगडंडियां सब खो गयीं,
राह भटका था मैं,
तेरे मिलने से कैसे?
रहगुज़र है किसी तरह..?

इश्क़ की बात कर

दूरियों का ज़िक्र न कर,
पास आने की बात कर

हार जाने का न नाम ले अब
तेरे कहने से उलझ गया हूँ,
अब लड़ रहा हूँ हर सवाल से,
तो जीत जाने की बात कर....!

जियें या कुर्बान हो जाएं,
फैसला मुश्किल नही,
मुलाकात की बात कर...!

सहरा में भटकने वाला आदम हूँ,
प्यास की बात कर,
पानी की बात कर..!!

बेरुखी रही है, किस्मत हमेशा,
नज़दीकियों की बात कर,
अब सिर्फ इश्क की बात कर..!!

Thursday, September 19, 2019

मायने

सूख तो जाने ही हैं ज़ख्म सब,
सर पे तपता सूरज एक ओर,
उधर बहता मुसलसल ख़ून जो है..!!

क्या हुआ जो फ़ना भी हुए,
देखो जिहाद हासिल है..!
कुछ अजीब ही है ये,
वतन का जुनून जो है..!!

हमने वतनपरस्ती के,
मायने तक बदल डाले,
तुम भी बदलो ये,
सड़ते गलते कानून जो हैं..!!

Tuesday, September 17, 2019

हकीकत

खींच लेगा कोई इस कदर,
क्या कोई ऐसी भी वजह है?

सोचा न था नियत बदलेगी,
मिलने में रखा क्या है..?

अजीब सा हो रहा है कुछ,
न जाने आखिर क्या है..?

खुमार है जुल्फों का, और,
आंखों से नशा दिया क्या है..?

ईमान डगमगा रहा मेरा,
तुमने देखो किया क्या है..?

खूबसूरत लग रही है,
कमबख्त ये कैसी ख़ता है..?

अंजुमन, जानता हूँ, बेरंग मेरा,
तेरे नाम की होली में रंगा है..!!

दिल में खलबली भी मची है
कुछ न होगा ये भी पता है..!

होगी बस हकीकत पेश्तर,
और सब रंग उड़ जाएंगे,
चंद अगले रोज़ में यही बदा है..!!

Monday, September 16, 2019

सौदे

रिश्ते में रही यूं बंदिश,

कि मेरे थे अश्क़,

और उसकी आँखों से निकले..!!

कैद में बीत गयी उम्र,
कौन अब सलाखों से निकले..?

इक्के दुक्के सिक्के,
कैसे लाखों के निकले..?

ठगे तो गए इश्क में लेकिन,
सौदे मुनाफों के निकले...!!

किसी न किसी ने तो,
पढ़े ही होंगे, वरना..!!

कैसे इतने खत
बिना लिफाफों के निकले...?

रसोई और कविताएं

तुम्हारे इंद्रधनुषी प्रेम ने,
मेरे हर काव्य को,
भिन्न स्वाद दिया..!!

कविताएं चटपटी,
चटखारेदार हैं,

मीठी भी, तीखी भी,
सीली सी कुछ,
कुछ गीली सी,
सूखी सी कुछ,
कुछ रसीली सी...!!

कोई बनारस हो गई,
कोई प्रयाग है,
किसी में शर्करा तो,
किसी मे मिर्चों की आग है..!!

देखो....तुम्हारी रसोई,
मेरी कविताओं में बस गयी..!!

Monday, September 2, 2019

सफ़ह-ऐ-इश्क़

तोड़ दी दीवार-ओ-नींव
तमने अपने ही हाथ, रिश्तों की,
फिर भी नुक्कड़ पे,
यादों का मकान बाकी है..!!

हमने भी अखलाक निभाया है,
दुनियावी जो थे चुका दिए,
रूहानी एक एहसान अभी बाकी है

कैसे सोच लिया कि,
मुकर के बच जाओगे..??

माना सब सफ़हे
हिफ़्ज़ हुए इश्क के लेकिन,
इक इम्तेहान अभी बाकी है..!!

Friday, June 28, 2019

महारत




एहसान चुकाएँ तो चुकाएं कैसे,
सब तो तुम्हारी अमानत है,
कर सका इतना ही, के तेरे दर्दों को,
साथ सहने की कोशिश की है..!

तेरी हमनवाई, इतनी बुलंद,
के खिलाफत, बेमतलब थी,
तो संग बहने की कोशिश की है..!!

इस हुनर का माहिर नही,
बस तेरा बयान-ऐ-दिल,
मैनें अपनी जुबां से,
कहने की कोशिश की है..!!!

Thursday, June 27, 2019

तोहफा-ऐ-तवारीख़




नसीब वाली होती हैं,
उन घरों की ईंटें तक..!!

बेटियों की किलकारियां,
जिनमे गूंजी होती हैं...!!

मजबूर-ऐ-मोहब्बत, उस रब ने,
बुत... बेटी का बनाया,
फिर झुक के खुद,
कदम चूम लिए खुदा ने...!!

ऐ बशर नादां-ओ-बेपरवाह,
कम से कम बेटियों के,
इस मर्तबे की तो कद्र कर..!!!

सुबहा


भला कहाँ छुपा है ये राज अब?
पैरहन अपने लहू में भिगो दिया है..।

भला ऐसे कैसे हुआ कि हम,
बावफ़ा भी रहे, दग़ा भी दिया है..?

सुनो कुछ शक है हमें इस रिश्ते पे,
घर बनाया भी, उजाड़ भी दिया है...!!

जब सब खो दिया है, फिर भी,
मज़ार-ए-रूह में तेरे नाम का दिया है...!!

Wednesday, June 26, 2019

फकीराना रईसी


रोशन जगमग घरों में,
पसरा सन्नाटा है,
मातमी उदासी है,

निगल रही है साँसों को,
चाट रही है लम्हों को,
रूह इस कदर प्यासी है..!

पल भर अपने ही बेटे को
थपथपाने का वक़्त नहीं,
उन कलाइयों के पास.....

जिनकी घड़ियों पे,
हीरों की नक्काशी है...!!

Thursday, June 20, 2019

क्यों

हां तुम हो,
एक बड़ा प्रश्न...!!

जिसके जवाब,
ढूंढता रहता हूँ...!!!

पर और भी बड़ा प्रश्न
के आखिर हम,
हैं ही क्यों...!!

बस यही विरक्तिदोष है...!!

Wednesday, June 19, 2019

तेरा पता..!!

मैने आदम दिलों, बुतों,
संग-ओ-फौलाद,
को पिघलते देखा..!!!

तू बच्चों की किलकारियों
में ही बसा है कहीं...!!!

Tuesday, June 18, 2019

हाल-ऐ-शब

तेरी यादों को,
अक्सर अशआर बना कर,
कागज़ में लपेट,
डायरी में बंद कर देता हूँ..!!

सोचता हूँ अक्सर,
के वो ख़याल,
जिसे दफना दिया,
दोबारा पेशतर न होगा..!!

लेकिन चौराहे के खंभे सा,
रोज़ मेरे वजूद के आगे,
खड़ा हो कर,
तेरी वफाओं का सिला मांगता है..!!

मैं नजर झुकाये,
बच के निकलने की,
कोशिश में रोज़,
उलझ जाता हूँ,
तेरी यादों की डयोढ़ी पे..!!

फिर ये लम्हे,
सर पटक पटक के,
मातम करते हैं,
तेरे मेरे किस्से का..!!

और हां, तेरी यादों की,
मजलिस भी बैठती है,
हर रोज़, मेरे संग दीवान पे,
तो.. ये हाल है मेरी रातों का..!!

Saturday, June 15, 2019

करतब

ग़म-ऐ-दिल बेशक,
तुम्हारा, बड़ा है बहुत,

लेकिन कभी क्या,
किसी तंगहाल से मिले हो?

तलाशोगे, तो उसकी भूख में,
दर्द की नई गहरायी मिलेगी..!!

वो नट बन के पैदा न हुए,
न मजमगार थे उनके पुरखे,

ये करतब तो सब,
पेट की आग कराती है..!!

ढपली की थाप पे,
उसका राग नही है ये,
ये भूख का दर्द है,
जो तान बन के निकला..!!

मुरमुरे बेचना चाहा कब,
उम्र तो उसकी खाने की थी,

उनकी तंगहाली तो बस नतीजा है,
तलब तुम्हे ख़ज़ाने की थी..!!

Thursday, June 13, 2019

वो

उसने कहा 'सुनो'
और कदम थम गये..!!

फिर ज़िन्दगी गुजरी,
हम वहीं रह गये..!!

उसने कहा 'चलो'
हम चल दिये,

दरम्यां सितारों के,
आज मकां हमारा है..!!

उसने कहा 'बस'
और सांसे थम गयीं..!!

तुरबत है, कब्र है,
कुछ सूखे फूल हैं..!!

Tuesday, June 11, 2019

रिश्ता

दिल ओ दुनिया के बीच,
मेरा रिश्ता तू ही तो है

लौटा दिया ग़मे दहलीज़ से,
फरिश्ता तू ही तो है,

गुज़रा सारा जहां बेहिसाब जब,
आहिस्ता तू ही तो है

कहाँ रही फिक्र मेरी किसी को,
एक बाबस्ता तू ही तो है..!!

खंजर

आदम ओ दुनिया की,
अब बात मत कर,
मैने ग़मों का समंदर देखा है,

तेरी झील झील आंखों में,
किसी और के नाम का
मंज़र देखा है..!!

जीने की ख्वाहिश कैसे भला?
हाथ में तेरे, मैनें अपने नाम का,
खंज़र देखा है..!!

मंज़िल

आराम लेने नही देता दिल,
इसे जीने का जतन बहुत है,

तेरे एहसान कैसे ओढूं बता?
ये झीना पैरहन भी बहुत है..!!

उतार ले इसे अब जिस्म से,
इस रूह का वजन बहुत है..!!

गुलशन की अब खाक ख्वाहिश?
कांटो का ये अंजुमन बहुत है..!!

बशर जाएगा भी कहाँ आखिर,
दो गज़ का वतन बहुत है..!!

खामोशियाँ

मेरी खामोशियां,
गूंज कर बहरी हो गयीं,
उसी कमरे में जहां,
हमारी मोहब्बत सोती रही..!!

अब सूख चुकी तो,
पोंछने का क्या फायदा,
यही है वो आंख जो,
उम्र भर रोती रही..!!

तुम्हारे सेहरा में जब,
खिल रहे थे वफ़ा के फूल,
आग बारिश की मेरे जिस्म को,
बरसों भिगोती रही..!!

तुम क्या गए, पीछे से,
मुकद्दर भी ले गए,
मेरी किस्मत ताउम्र फिर,
तेरी ड्योढी पे रोती रही..!!

यही है वो आंख जो,
उम्र भर रोती रही..!!

Monday, June 10, 2019

दलदल

सैकड़ों हज़ारों,
बेघर चले आते हैं,
इन गली कूचों में ही,
कहीं समा जाते हैं....!!

गाँवों को समूचा,
निगल रहे हैं...!
हर रोज़, शहर,
दलदल हो रहे हैं...!!

खता

खता दिल की थी,
चोट जिस्म ने खायी,
शमशीर-ओ-तलवार,
सह रहा है...!!

कट ही जायेंगे,
ये लम्हे हिज़्र के,
कहीं भीतर दिल,
ये कह रहा है....!!

बात दीगर है की,
जिस्म के, हर गोशे से,
मानिंद-ऐ-आब,
लहू बह रहा है...!!

माद्दा

माद्दा निभा जाने में है,
हारने में नहीं,
चमन को गुलज़ार रखे,
असल दीदावर वही....!

ज़माने की  कसौटियों पे,
खरी है बात,
तेरी नज़र में गलत,
और ज़रा सी सही.....!

लड़....! के बुलबुलें आज़ादी मांगती हैं,
कोहराम तेरा...खामोशी नहीं..!

Saturday, June 8, 2019

फीका विश्व

अर्थ, राज्य, देश परदेश,
राग रंग, प्रेम द्वेष,
ईश्वर की सत्ता,
धर्म की कसौटियां,
दर्शन और माहात्म्य,
सब फीके हैं.....!!

सुबह सुबह बच्चों को,
भूख से बिलखते देखा है...!
 

खूबसूरत मोड़

बेबसी को उसकी,
एक खूबसूरत मोड़ दिया,

खातिर-ऐ-क़त्ल,
जब खंज़र उठाया उसने,

हमने खुद को,
ढीला छोड़ दिया......!

नकाब

हसरतों की पेशानी पे,
ये बिखरा सा ख्वाब क्यों है?

क्या छुपाये हो दिल में,
चेहरे पे हंसी का नकाब क्यों है?

मिलता था जो इत्मीनान से,
वो शख्स बेताब क्यों है?

क्या छुपाये बैठे हो,
ये हंसी का नकाब क्यों है?

साथ

रोज़-ऐ - क़यामत तक,
साथ का वादा करने वाले,
दस्त-ऐ-ख्वाहिश, मजबूर हो गए....!

जाते थमा गए अरमा हज़ारों,
जो ये मुट्ठी कस दी जरा सी,
ख्वाब, सब वो चूर हो गए....!

शीशा-ऐ-दिल टूटने का "अंतस",
जश्न यूं मनाया फिर हमने,
"दीवाने" मशहूर हो गए...........!!!

भूलना



तुमको चाहना तो सिर्फ दुश्वार था,
पर भूलना तो कोई जंग हो जैसे !

खुद से मिलना भूल गए

कुछ यूं बनाया संगदिल उसने,
दर्द में गैरों के पिघलना भूल गए,

लतखोरी ऐसी रही इश्क़ की,
घर से भी निकलना भूल गए,

फिर कातिल से मिले हर रोज़,
बस खुद से मिलना भूल गए....!!

Sunday, October 28, 2018

खाली पेट

खाली पेट नींद नही आती,
हमसे बे‍हतर जानेगा भी कौन?

फाके किए हैं महीनो हमने!!

रहने दो शर्मो हया और
ये हिजाबपारस्ती, झूठ है सब
कब्र मे गुज़ारी है जिंदगी,
पर्दानशीनो हमने...!

नखरे हैं सब, और शोखियाँ,
ये जो तुम्हारे मुश्किलों के जिक्र हैं,
कसौटियों पे शबें गुज़ारी,
नज़नीनो हमने....!

और फाके किए हैं,
महीनों हमने..I

Thursday, October 18, 2018

इलज़ाम

वक़्त का दरिया है
लोग हैं, यादें है, लहरें हैं..

उम्मीदों के समंदर है
वजहें हैं, जीत है, हारें हैं....
तन्हाईयाँ, इंतज़ार है....
अजीब से बादल हैं,
सिसकियाँ, खुशबुएँ,
ज़ख्म-ओ-मरहम हैं

माज़ी के तूफ़ान हैं
दरारें हैं दीवारें है
शबनम हैं शरारे हैं
दुनिया भर के दावे हैं
उनके हैं या तुम्हारे हैं...?

सुबह की मदहोशियाँ हैं,
के शाम की ललियाँ हैं,
जिंदगी हैं कि,
अंगारे हैं....!!

मैं ही भूखा नहीं,
रोटियों का मोहताज़,
करोड़ों बेचारे हैं...!!

इलज़ाम मोहताजों की 
हर खुदकुशी का,
तुम्हारे ही सर है,
जो उनके हिस्से से,
तुमने अपने घर,
सँवारे हैं........!!

दीमकों का राज

रक्तरंजित इतिहास दोहराता है,
खुद को आज में....!

हिन्द की संताने लड़-मर रही हैं,
दीमकों के राज में.....!

उद्योगपतियों का राग, बजट है,
लोकतंत्र के साज़ में.....!

बस्तर की अछूत लड़की की,
चीखो-पुकार दब गयी,
बंदूकों के अट्टहास में,
वर्दियों  की आवाज़ में.....!

पर असल कातिल हैं वो,
जो छुपे हैं, सफ़ेद कुर्तो,
और कारखानों की आड़ में....!

ऊंची हो गयी दहलीज़ न्याय की,
रोकड़े के चबूतरे आधार बन गए,
असर नहीं रहा अब,
गरीब की फरियाद में...!

हिचकियां

बड़ा अजीब लगता है,
जब हिचकियां आती हैं...!!

सोचता हूं,
उधर तुमको भी आती होंगी,
जब इधर हाल बुरा होता है,
मुफीद होता है,
सो जाना, या फिर,
बाहर निकाल जाना...!!!

वरना कमरे की चार दीवारें,
अपने जबड़े फाड़,
मुझे खाने को दौड़ती हैं...!!!

हां उधर तुमको भी अकेले में,
तकल्लुफ तो होता ही होगा.....!
दुनिया भर में,
दीवारें एक जैसी है....!!!

सुबह बेपनाह उनींदा,
जब दरवाज़ा खोलता हूं,
नाउम्मीदी का दरिया,
मेरे कमरे और मुझ में,
भर जाता है.....!!!

हालिया बशर

कूचे पे जमा हैं कुछ बशर,
सुना है,
इंसानी लहू के तलबगार है..!!
कह रहा था कोई,
गोया दिमागी बीमार हैं...!!!

जिनसे अकेले सबील पे,
इक कतरा ना पेश फरमाया गया,
खून बहाने को आए,
मिल के चार हैं..!!!

जिनके बुजुर्गों ने,
वतन की चादर बुनी,
वो आज,
मलाल ओ रंजिश के दस्तकार है..!!

नुक्कड़ की दुकानों पर,
मिलते थे शामो शहर जो दिल,
मर गए हैं,
वजह ये सियासती बदकार हैं..!!!

इस शहर की हवा की ताजगी भी,
मर गई बरसों पहले...!!

सुना है तुम्हारे शहर में भी,
पतझड़ बरकरार है..!!

तुम मुझ से,
जिरह कर निकले थे,
आज हमारे शहरों में भी,
आपसी तकरार है...!!

Thursday, November 23, 2017

सम्पूर्ण हूँ मैं

भूख नही है, प्रेम पाश है तुम्हारा,
जो हर दोपहर, कढ़ी की सोंधी खुशबू बन,
खींच लेता है मुझे घर के जानिब,
मैं सम्मोहित सा, खिंचा आता हूँ..!!!

माया हो कर खुद भी,
तुमने जन्मी है एक और माया,
में विरक्त रह भी कैसे पाता,
तो अब माया पाश में बंधा हूँ तुम्हारे...!!

अनमना था, निष्पक्ष था मैं,
पर प्रेम इतना भारी होगा
ये पता न था।
झुक गया अस्तित्व पूरा
तुम्हारी ओर, और तब मैंने जाना
सन्यास बेमानी है।

कदाचित ये विचित्र है,
की माया के आसक्त मैं,
प्रवाह में बहता हूँ,
तुम्हारे प्रभाव में
रहता हूँ

ये संयोग सुखद है
मेरा इच्छित है,
अब और कोई आकांक्षा नही
सम्पूर्ण हूँ मैं।


Monday, November 20, 2017

तुम पर आशार लिखने हैं

तुम ये जो सब्ज़ियों पे ज़ुल्म करती हो,
मुझे पता है,
मेरी हर गंद नफ़्स को,
यूँ ही काट देना चाहती हो...!!!

तुम जब धो देती हो एक तौलिए को,
बेपनाह रगड़ कर,
मैं समझ जाता हूँ..!!!
एक नाराज़गी धोने की,
कोशिश है ये..!!!!

बार बार चखती हो जो,
दाल में नमक,
तुम जांचती हो मेरे प्यार के तेवर..!!

क़रीने से कपड़े नहीं लगाए मेरे,
ज़िंदगी को सहूलियत का,
भरपूर अन्दाज़ दिया है..!!!!

संवरना कोई जरूरत नहीं,
पर हाँ तुम्हारी ख़्वाहिश भर है,
मेरे दिल की गहराइयी,
नापनी होगी आज तुमको..!!!

रोशनी की परिभाषा,
कोई तुमसे पूछे,
मुझे देख आँखो में,
जुगनू दमकते हैं...!!!

मैंने सितारों से ले कर,
गुलों तक मशविरा किया है,
अंदाज़े बयान नहीं मिलता,
आज मुझे भी तुम पर आशार लिखने हैं..!!!

Wednesday, November 15, 2017

किमाम

तू ही खुदा तू ही कुरान हो जाये
मैं हिफ़्ज़ करूँ तेरे गोशे गोशे को ऐसे
तेरे नक्श ओ वज़ूद की
तुझसे भी ज्यादा पहचान हो जाये.......!!

पाक हो जाएं दिन
सुन्नत हो जाएं रातें
की हर लम्हा
माहे रमजान हो जाये.....!!
तेरे नज़रे करम का जो
कभी इधर एहसान हो जाये.......!!

कभी यूं जुड़ने दे खुद से,
के कोई दूरी न रहे,
मिले सांस यूं,
तेरे मेरे बीच किमाम हो जाये.......!

ये जो रूखे से ख्यालों का 
छोटा सा कुनबा बसा है दरम्यां,
कुन्ह-ऐ-गुल हो जाये,
गुलफाम हो जाये.....!

चलो इस रिश्ते को  वो मुकाम दें,
के झुक जाये बशर तमाम,
इस मोहब्बत के नाम,
एक सजदा-ऐ-अवाम हो जाये....!

मिसाल बन जाये इश्क़ यूं,
के हर ज़ालिम-ओ-सितमगर
दस्तूर-ऐ-आशिक़ी का गुलाम हो जाये....!

मिल कभी यूं,
के मेरे अश्क़ भिगो दें तुझे
बेपनाह,
और तेरी साँसे मुझ में किमाम
हो जाएँ.....!

फिर तू ही खुदा,
तू  ही कुरआन हो जाये....! 

वहम

कम रह जाती है जिंदगी हमेशा
सिलसिले चाहे मुश्किलों के
कम हो न हो...

वो तो होता ही रहेगा
के दर्द जिंदगी का दूसरा नाम है
चाहे कोई
सितम हो न हो........!

अपनी मुस्कुराहटों का मरहम
रखा करो इस पे
न जाने और आशिकी का
ये जख्म हो न हो......?

बहुत खूबसूरत है तोहफा ये ज़िन्दगी
हमेशा हम तुम पे मेहर ये
वहम हो न हो.........?

रखने दिया करो काँधे पे सर
और रोने दिया करो जार बेजार
कोई गम हो न हो...........?

इसी जनम चाहो जितना चाहना है
किसे पता फिर कोई
जनम हो न हो.........?

रूठा भी करो तो आगोश में सोया करो
कौन जाने कल
हम हो न हो..........??

Saturday, September 24, 2016

हर तरफ जंग है

सुबह दूध के लिए,
लाइन में लड़ रहे हैं....!!!

दोपहर,
बिल जमा करने के लिए लड़ रहे हैं...!!

बच्चे के एडमिशन के लिये,
स्कूल में लड़ रहे हैं........!!

कूड़ा फेकने के लिए,
पडोसी से लड़ रहे हैं.......!!

रिपोर्ट लिखाने के लिए,
थाने में लड़ रहे हैं.....!!

डिग्री का ढेर लिए,
नौकरी पाने को लड़ रहे हैं.......!!!

सीमा पर,
देश बचाने को लड़ रहे हैं......!!!

कुलचे के ठेले के बगल,
बच्चे जूठन खाने के लिए लड़ रहे हैं...!!

कुछ बकरे की कुर्बानी पर आमादा,
कुछ बचाने को लड़ रहे हैं..........!

मूर्ती न फेको गंगा में,
तो कुछ नहाने के लिए लड़ रहे हैं.......!

मीडिया डाल रहा पर्दा,
तो लड़के सच बताने के लिए लड़ रहे हैं........!

ठेके पे,
बोतल पाने को  लड़ रहे हैं..........!
गणेश को दूध पिलाने को लड़ रहे हैं.....!

कुछ जंगल,
तो कुछ गाय बचाने को लड़ रहे हैं........!
कुछ पानी बचाने को,
तो कुछ बहाने को लड़ रहे हैं.....!

बहुतों ने छोड़ दिया,
कुछ देश में आने को लड़ रहे हैं..........!

राम बड़ा या अल्लाह,
जताने को लड़ रहे हैं....!

उधर अपनी नफ़्स से,
हम जमाने से लड़ रहे हैं।


लड़ रहे हैं लड़ रहे हैं लड़ रहे हैं लड़ रहे हैं!!!!