वक्त का मारा हुआ
तू इश्क का मारा हुआ
कभी अपनों से कभी
खुद से हारा हुआ...
तेरी बेचैनी न कम होगी
किसी शै किसी मरहम से
परीशां भी आज तू
दूजों की ज़िद, गैरों के गम से
है जैसी भी कहानी,सच्ची झूठी
लिखी है अब तक इरादों से
है जो अदना सी पहचान
तेरे अपने ही करम से...
है कसम की न गिरने देना
इक भी और अश्क चश्मे नम से
कह
की तेरा साथ ही एक आरज़ू
अपने सनम से
और हाँ
तू कहे तो अभी मिट जाऊं मैं
कहे तू जैसे तुझपे क़ुर्बान
शर्त इतनी सी
की सिर्फ तेरा हो जाऊँ मैं..!