खता दिल की थी,
चोट जिस्म ने खायी,
शमशीर-ओ-तलवार,
सह रहा है...!!
कट ही जायेंगे,
ये लम्हे हिज़्र के,
कहीं भीतर दिल,
ये कह रहा है....!!
बात दीगर है की,
जिस्म के, हर गोशे से,
मानिंद-ऐ-आब,
लहू बह रहा है...!!
चोट जिस्म ने खायी,
शमशीर-ओ-तलवार,
सह रहा है...!!
कट ही जायेंगे,
ये लम्हे हिज़्र के,
कहीं भीतर दिल,
ये कह रहा है....!!
बात दीगर है की,
जिस्म के, हर गोशे से,
मानिंद-ऐ-आब,
लहू बह रहा है...!!
No comments:
Post a Comment