Saturday, October 31, 2020

आइना

अक्सर देखता हूं उसे,
खुद को आईने में देखते हुए,
संवरते हुए निखरते हुए..!!

बगाहे आज खुद को,
देख लिया गौर से..!!

बढ़ी दाढ़ी, उलझे बाल,
चेहरे पे शिकन, माथे पे सवाल..!
अधपकी मूंछें, अजीब सा हाल..!!

बड़ा सदमा सा लगा है,
सोच में हूं, क्या ये में वही हूं..!!
कुछ साल पहले था जो..!!

क्योंकि वो वहीं है,
मैं वो नहीं हूं...!!

ये साजिशें आइनों की हैं,
इस देश में मर्द,
अक्सर आइना नहीं देखते...!!

Thursday, October 29, 2020

लोकतंत्र

झांझ मंजीरे की तानों में,
ईदों में, होली दीवाली, गुलालों में,
ढोलक की थापों में, बिरहा आलापों में,
लोकतंत्र बैठता था चौपालों में....!

जनमानस के सदभाव में,
नफ़रत के अभाव में
विकास के उजालों में,
लोकतंत्र संसद में बैठता था,
विपक्ष के सवालों में....!!

हक लूटे, इमदाद लूटी,
घर लूटे, जायदाद लूटी
अब संसदीय गिद्धों की नजर है,
गरीब के निवालों पे...!!!

निचोड़ डाली,
आर्यावर्त की आबरू,
जला दीं फसलें,
अमन ओ आजादी की,
बस कुछ ही सालों में..!!!!

आज मोमबत्तियां लिए,
सड़कों पे खड़ा, मजबूर वो,
जो लोकतंत्र बैठता था संसद में,
विपक्ष के सवालों में..!!!!!


Monday, February 17, 2020

खुशबू

सुबह उठ कर गीले तकिये को देखा,
तो देर तक सोचता रहा....... !

ये शबनम फलक से आई,
के मेरी आंखों से......?


क्या गुलों ने कर ली खुदकुशी.......?
जो बिखरी पड़ी है फिजा भर में खुशबू..!

फिर कभी सोचता हूँ,
शायद आई तेरी साँसों से.....!

उधेड़बुन

बोलती बहुत है,
ख़ामोश भी बहुत है....

ख़ुशी है बेपनाह,
फिर तन्हाई को तेरा,
अफ़सोस भी बहुत है....

ज़िंदगी,
बड़ा एहसान मानती है तेरा,
पर ये फरामोश भी बहुत है...

हाँ,
हारी भी है बाज़ी-ऐ -रूह,
पर बचा जोश भी बहुत है...

लड़खड़ाई है, बाद फुरकत,
अब दगाओं का, होश भी बहुत है......

उधर,
पाकीज़गी भी दिल की बेहिसाब,
मुब्तिला गुनाहों में भी इधर बहुत है.....

इधर
मचलती है वही आरज़ू दामन में,
तेरे रूबरू जो सरगोश बहुत है....

पेशानी पे,
कालिख बन भी लगी है,
किस्मत सफेदपोश भी बहुत है...

अंतस,
आलम है लम्हो का, बेतरतीब,
इधर दर्द-रोज़ बहुत है....