Wednesday, June 21, 2023

क्या है?

तुम तो कहते थे,

सब टूटा है, सब छूट गया,

तो फिर ये तुम्हारे,

सीने से लगा क्या है?


क्यों इतने बेचैन हो?

ये तुमको हुआ क्या है?


वो तो बस कह देता है,

अपने दिल की बात,

इसमें बुरा क्या है..??


ऐसा नहीं है कि,

ये रास्ता उधर नही जाता..!


मैं उसकी गली से,

गुजरता हूं रोज लेकिन,

अब उसके घर नहीं जाता..!


वो जब कर रहा था,

मेरी लंबी उम्र की दुआएं,

एक मैं, जो कहा करता था,

ये शख्स क्यों मर नही जाता..!

क्या चाहिए क्या नहीं?

मुझ से होकर,

इज्जत चाहिए,

दाद चाहिए..!


बस मेरे मुंह में

ज़बान नहीं चाहिए..!!


उसे मुझसे सब चाहिए,

बस एहसान नहीं चाहिए..!


मुझे ज़र्रा बना कर,

वो आसमान होना चाहता है,

लेकिन उसे अंतस की,

पहचान नहीं चाहिए..!


बड़ा अजीब सा शख्स है,

गत्ते से दिल लगाए बैठा है,

भीतर का कीमती,

सामान नहीं चाहिए..!!


सब सजदे उसके,

बनावटी हैं..!!

दिखावे की इबादतें उसकी,

उसे घर में अपने,

ईमान नहीं चाहिए..!


मेरा मुर्दा जिस्म ही अब ,

शायद रास आए उसे..!

इस जिस्म में उसे,

जान नही चाहिए.!!

मैं

ये जान कर हर शाम,

और गुनाह करता है वो,

के सुबह सुबह,

माफ कर दूंगा मैं..!


जिस बिस्तर पे,

कत्ल हुआ रात मेरा,

अपने ही हाथों,

साफ़ कर दूंगा मैं..!!


हमारी भी कहानी में,

नया कुछ नही,

उसके हाथ में,

हर रात खंजर होता है,

और साथ में मैं..!!


कहानी खत्म और हाथ,

मेरे कुछ आया ही नहीं,

उसके हाथ सब आया,

और साथ में मैं।

सच बोला है उसने

पहली दफा बोला है उसने,

मैं सहम गया हूं,

सच बोला है उसने..!


जिन सच्चाइयों पे,

मेंने पर्दा डाल रखा था,

उनका पुलिंदा,

खोला है उसने..!!


मैं अपने वजूद की,

ओट ले रहा हूं,

आख़िर ऐसा भी क्या,

बोला है उसने?


मैं हर शख्स पे,

इल्ज़ाम लगाता रहा,

क्या खुद को भी,

टटोला है मैंने?

उस से

फिर भी जुदा हो,

बहुत फर्क है,

तोहमत लगाना कोई तुमसे सीखे

इल्ज़ाम लगाना उस से..!!


दिमाग लगा सको,

तो बताना हमे,

पहले दिल लगाना उस से..!!


उसी ने राख किया है,

कोई कैसे बेहतर जानेगा,

मेरा ठिकाना उस से..!!


वो खुदा बन गया है,

दगा दे दे कर,

छुपना नामुमकिन है,

मत बनाना कोई बहाना उस से..!!


कायनात के,

इस पार भी है उस पार भी,

सीख लेना,

हद के पर जाना उस से..!!


मंदिर मसीती, काबे मक्के,

गिरजे रंगशाला उसकी,

मयखाना उस से..!!


सुना है, मसीहा है,

कभी मिलाना उस से..!!

शतरंज

हमारी ज़ुबानों में ज़माने का,

फर्क था,

बातों को, इशारों में,

समझाया हमने...!


बताओ चालों से,

कैसे बचते?

जब शतरंज पे,

घर बनाया हमने..!


पलट पलट के,

कभी भी उलझ पड़ता है,

और कहता है,

बात को बढ़ाया हमने..!


खुद के जिंदा होने का,

एहसास दिलाया हमने..!

किसी से ख़त भेजा,

उसे बुलाया हमने..!!


फिर सिरहाने,

खड़ा किया,

और खुद को,

दफनाया हमने..!!


सफ्ह में सबसे आगे बढ़,

उसने दाद दी, मदद दी,

अपनी बर्बादी का,

जब जश्न मनाया हमने..!

ज़मी ऐ हिन्द - आजकल

यहां अश्क चाट के,

सब जिंदा हैं इक दूजे के,

वतन हुआ या,

रेतीली फसीलों में,

कैद जैसे शहर कोई..?


मुरझा के गिर पड़े,

शाखों से परिंदे तक,

वो आया तो ऐसे,

जहरीली जैसे लहर कोई..!!


मसीहा मान के उस को,

लोगों ने पलकों पे बिठाया,

वो लगा दामन ए मुल्क पे,

जैसे बुरी नजर कोई..!!


न पांव उठा सकता है न हाथ,

न आवाज़ उठा सकता है,

न सिर कोई..!

लगता नही के अब बचा है,

जिंदा यहां बशर कोई..!!


लहरों के निशान रेत पे,

आवाम के माजी का,

अक्स दिखा रहे हैं,

बहती थी इस जमी पे कभी 

मुहब्बत की नहर कोई..!!


लौट के कभी आयेंगे,

तो हिंद की जमी पे,

तलाशेंगे परिंदे कल के, 

और कहेंगे खुद से कराह कर,

मुल्क ए हिंद में भी था,

जम्हूरियत का शजर कोई..!!

आइना समझ ले मुझे

 भला यह कैसी,

फरियाद करता हूं?

तू सामने होता है,

और तुझे याद करता हूं..!


यह कैसा सितम है

यह कैसे कत्ल किया है तूने?

मुझ में और मिट्टी में फर्क

कैसे खत्म किया है तूने?


समझ नहीं आता

इश्क हूं कि समझौता हूं मैं?

तेरे आगोश में होता हूं,

तो क्यों दर्द में होता हूं मैं?


चल आईना समझ ले,

तोड़ दे मुझे,

बंदिश नहीं हूं,

मजबूरी भी नहीं

छोड़ दे मुझे..!!

ठिकाने लगा है वो

 न जाने कितनी और,

सच्चाइयों से महरूम रहता,

ध्यान न देता के,

नजरें चुराने लगा है वो


बिस्तर पे सुबह,

सलवटें नही मिलती अब

बाहर कहीं तो

रात जाने लगा है वो


वो सुना देता है,

मैं मान जाता हूं

कैसे रोज नए,

बहाने बनाने लगा है वो


मुझसे दगा कर 

दर दर की ठोकरें खा रहा है

अब कहीं जा के

ठिकाने लगा है वो


संवार रहे थे

जो दो जहां उसका 

उन्ही हाथों से,

दामन बचाने लगा है वो


अब मान लूंगा ये बात

हां बदल गया वो

मुझे दर्द में देखा है

मुस्कुराने लगा है वो

रिश्ता

 उस से,

राब्ता हो गया,

फिर पहली दफा रात को,

मैं अपने घर जा के सो गया..!!


तेरा नाखून टूटा था,

शहर में चर्चा था,

के मुझे कुछ हो गया..!!


मंदिर, मस्जिद, शिवालों से,

हार कर आया,

मेरी गोद में,

वो अपना दर्द रो गया..!!


इक ख़ज़ाने का आज पता मिला मुझे,

मेरी सांसों के मोतियों में..!

अपनी सांसों का धागा पिरो गया.!


पहले जैसा,

कोई भी नही लौटा,

उसकी गली में जो गया..!!

इश्क के असर दोगले होते हैं

 पंछियों का मौसम बीत जाता है,

फिर बचा इक बूढ़ा दरख़्त होता है,

उसपे कुछ पुराने घोंसले होते हैं..!


लोग मुरझा जाते हैं,

जां सूख जाती है, मगर,

जिस्म हरा भरा रहता है,

इश्क के असर बड़े दोगले होते हैं..!


वो कहीं नहीं पहुंचते, जो,

पतवारों पे खड़े होते हैं..!!

घड़ी की सुइयों संग चले होते हैं।


खुद की हार में जो,

अपनों की जीत देख लें,

वो लोग बड़े भले होते हैं..!

मगर इश्क के असर दोगले होते हैं..!!


गया कम था लौटा बहुत है

 जाने किस के आगोश से

निकल के आता है

लेकिन मेरे गले लग के

रोता बहुत है..!!


कुछ खास ख्वाब देखता है

वो आजकल

सुना है सोता बहुत है


में तुम्हे भी समझाऊं

ये अब मुमकिन नहीं

मेरे दिल से ही मेरा

समझौता बहुत है


मेरे हाथ में

उसकी हथेली जरा सी थी

वो गया कम था 

लौटा बहुत है


तुम्हारी सब खयानतों को

माफ कर दिया मैंने

मेरा दिल छोटा बहुत है


मेरी असली शक्ल देखने की

तुम्हारी ये ज़िद बेमानी है

मुखौटा देख लो, बहुत है


दोस्त?

 वहीं घाव लिखते हो?

वहीं खंजर लिखते हो?

वहीं इक हाथ लिखते हो दोस्त?

कैसे इतने कातिल?

अल्फाज लिखते हो दोस्त?


वफा के तगादों से,

तुमने ही जान ली,

तुम ही हमे

दगाबाज लिखते हो दोस्त?


स्याही से लहू की,

महक आती है

कैसे जुल्म का नगमा लिखते हो?

कैसे सितम का साज लिखते हो दोस्त?

जिंदगी अभी आधी हुई

 रूठ के गया,

तो हर दफा लौट आऊंगा

ये जरूरी नहीं.......


मेरे तुम्हारे बीच

लिबास आ गए हैं

कैसे कहते हो?

कोई दूरी नही ............


मुहब्बत हो तुम मेरी

बर्दाश्त कर लेता हूं

झुका दे मुझे वरना

ऐसी कोई मजबूरी नही.........


तंग आ गया तो,

छोड़ दूंगा तुझे

जिंदगी अभी आधी हुई

जाया पूरी नहीं.........