मुझ से होकर,
इज्जत चाहिए,
दाद चाहिए..!
बस मेरे मुंह में
ज़बान नहीं चाहिए..!!
उसे मुझसे सब चाहिए,
बस एहसान नहीं चाहिए..!
मुझे ज़र्रा बना कर,
वो आसमान होना चाहता है,
लेकिन उसे अंतस की,
पहचान नहीं चाहिए..!
बड़ा अजीब सा शख्स है,
गत्ते से दिल लगाए बैठा है,
भीतर का कीमती,
सामान नहीं चाहिए..!!
सब सजदे उसके,
बनावटी हैं..!!
दिखावे की इबादतें उसकी,
उसे घर में अपने,
ईमान नहीं चाहिए..!
मेरा मुर्दा जिस्म ही अब ,
शायद रास आए उसे..!
इस जिस्म में उसे,
जान नही चाहिए.!!
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