Sunday, May 19, 2013

एक बच्चा अभी भी भूखा है....!

आयतें बेचता फिरता है,
बता काफिर तू है कि मैं...?

गीता की बोली लगा कर,
किस हक़ से,
मुझे अधर्मी कहता है.....?

अगर इतने ही धार्मिक हो,
तो अब तो यीशु को,
सूली से उतार दो.....।

दो हज़ार सालों का दर्द,
यीशु ही समझे होंगे...!

धर्म धर्म, मज़हब मज़हब,
न चिल्लाओ.....!

कभी इंसान भी बनो...!

गणेश जी नहीं हैं प्यासे, न भूखे,
हाँ, 100 करोड़ बच्चों का,
पेट भर सको तो भर दो.....!

रहने दो.....!

ये तुम्हारे बस का नही!

हाँ अगर तुमने यीशु, गणेश,
या साहिब-ए-आलम को,
बोलने दिया होता.....!

तो कहते,
जाओ उसका पेट भरो,

एक बच्चा अभी भी भूखा है.....!

Saturday, May 18, 2013

मैं खरीददार नहीं.....।

तेरी दूकान मुबारक,
तेरे सौदे मुबारक तुझे,

माना की हमदम है तू,
झूठा है, मुझे ऐतबार नही,

मजहब का धंधा है तेरा,
पर मैं खरीददार नही....।

Thursday, May 16, 2013

जिंदगी.....!

रौशनी लबरेज़ कुछ,
कुछ परछाइयों के दिन...!

सुलगती शामे,
धुंधलके सवेरे कुछ,
सतरंगी मिलन की दोपहर कोई,
कुछ तन्हाइयों के दिन.....!

मुहब्बतों के झीने परदे कुछ,
कभी इश्क तार तार,
वफाओं की खुशबुएं कभी,
कभी रुसवाईयों के दिन...!

रौशनी लबरेज़ कुछ,
कुछ परछाइयों के दिन...!

मेरा तुझसे लिपटना कभी,
कभी खफ़ा खफ़ा होना,
उदासियों के दिन,
कुछ अंगड़ाईयों के दिन.....!

कुछ तेरे दामन के लम्हे,
कुछ मेरे वजूद के पल छिन....!

अब समझ रहा हूँ,
जिंदगी क्या थी...!

बस "तेरे" कुछ दिन
और "मेरे" कुछ दिन....!