Friday, April 11, 2008
ख़ुद से जुदा मुझसे खफा, थोडी सी ये जिन्दगी,
शाम के पहलू में रोता हूँ सर को ढाल के,
एक टुकडा कब से मैंने, रखा बहुत सम्हाल के,
बस उसी टुकड़े को फिर से ढूँढती ये जिन्दगी,
ख़ुद से जुदा मुझसे खफा, थोडी सी ये जिंदगी,
हर गज़र मुझको सुनाये, शब-ऐ-आख़री की आहटें,
अपने ही तय अंजाम से भागती ये जिन्दगी..................
Friday, April 4, 2008
सिक्के हैं ये.......
बटुए से गिरे तो, क्रेडिट कार्ड वालों को लजा गए,
ये किसी के नही..........
न मेरी जेब से दोस्ती,
न तेरी जेब से रिश्ता,
सिक्के हैं ये .........
शीशे
ये काले सफ़ेद शीशों के कैदी ही
दिल तोड़ने का हुनर जानते हैं
शीशे के घर बनाता तो परीशां रहता,
कब संग आ लगे दीवार से,
फिर लोगों का खैरख्वाह कोई तो हो....
उस शाम
दूसरे को मिटटी का तेल और तीली,
दे दी घर और खानदान ने,
बाहर निकल कर मोहल्ले वाले बोले,
किस्सा ख़त्म, चलो बदनामी तो ना होगी अब
न कोई रिपोर्ट न गिरफ्तारी,
मामला उलझा ही नही,
दरअसल कुछ हुआ ही कहाँ था,
बस दो जिस्म नही रहे, दो घरो में,
खानदानों ने अलविदा कहा था दोनों को, अपनी अपनी तरह,
बस एक लड़की को, एक लड़के से प्यार हुआ था.....
ख्वाहिश
बच्चे का क्या कुसूर,
एक खिलौना मांग लिया दूकान के सामने से गुजरते हुए,
बाप ने रुक कर दो पल
बच्चे की ख्वाहिश और नोट की रंगत को तोला,
हरा था, वजनी था, नोट था,
मासूम की खुशी पर भरी पड़ा,
कौन जाने क्या वज़ह थी,
हाथ पकड़ा और ले चला,
हसरतों ने आंसू बन कर आंखों से बहना शुरू कर दिया,
काश नोट की रंगत आंसुओं से धुल जाती,
मासूम को मनपसंद गुडिया मिल जाती................
उलझन
वक्त गुजरता जाए है,
तू मुझसे रफ्ता रफ्ता जुदा होती जाए,
मुश्किलों की बारिश में रोज़ भीगता मैं,
कुछ कोशिशें करता हूँ,
ख़ुद को धोखा देने की, सुखाने की,
कहीं किसी दरख्त की तलाशता हूँ टहनी,
की मुश्किल शायद गुजर ही जाए,
पर वो तो चली ही आती है,
मेरी तन्हाई, तेरी फुरकत का एहसास दिलाने,
नीम के पेड़ पे बैठे,
भीगे परिंदे की याद दिलाने।
सालों बाद शहर में
मौसम ने महीने भर बाद होली खेली,
बारिश को न्योता मिला तो खुशी खुशी चली आई,
ठंडी हवा ने भंग घोल दी साँसों में,
बादलों ने ऊंची छत पे चढ़ के सबको सराबोर किया,
पेड़ों पे न जाने किसने हरा गुलाल डाला,
सूरज शाम को टेसू के फूल छिड़क के भागा,
सालों बाद आज एक कोने में
मैंने शहर में इन्द्रधनुष देखा है...................
हैं ना
किसी का छोर किसी के किनारे से नही मिलता,
बस अलग थलग, मैं मुस्कुराता हूँ,.......
बस यूँ ही.........
सुबह उगे कभी दिल बुझता है,
कभी शाम ढले रंगीनी आती है,
तेरी याद आती है और कहती है मुझसे,
तुझे इश्क है न.............?
धागा
ये धागा...........
मुझे मुश्किलों में लिए जाता है
साँसों में कोई डोर है
तो टूटती क्योँ नही....................?
..............
लफ्ज़ डूबते उतराते यादों के समंदर में,
जैसे कश्ती कोई टूटी लहरों से चोट खा के,
सोचता हूँ, क्या चुन लूँ, क्या लिख दूँ,
दर्द हल्का हो जाए,
लिख दूँ तो शायद हो ही जाए...........
पर साफ साफ लिखने से कलम कतराए...........
सफर
पर संग मेरे तन्हाई चले,
एक सुबह उगे,
एक शाम ढले,
कहीं भी रहूँ ,
पर संग तेरा नाम चले !