Friday, April 11, 2008

खोई खोई सहमी सहमी, तन्हा सी ये जिन्दगी,
ख़ुद से जुदा मुझसे खफा, थोडी सी ये जिन्दगी,
शाम के पहलू में रोता हूँ सर को ढाल के,
एक टुकडा कब से मैंने, रखा बहुत सम्हाल के,
बस उसी टुकड़े को फिर से ढूँढती ये जिन्दगी,
ख़ुद से जुदा मुझसे खफा, थोडी सी ये जिंदगी,
हर गज़र मुझको सुनाये, शब-ऐ-आख़री की आहटें,
अपने ही तय अंजाम से भागती ये जिन्दगी..................

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