Thursday, September 19, 2019

मायने

सूख तो जाने ही हैं ज़ख्म सब,
सर पे तपता सूरज एक ओर,
उधर बहता मुसलसल ख़ून जो है..!!

क्या हुआ जो फ़ना भी हुए,
देखो जिहाद हासिल है..!
कुछ अजीब ही है ये,
वतन का जुनून जो है..!!

हमने वतनपरस्ती के,
मायने तक बदल डाले,
तुम भी बदलो ये,
सड़ते गलते कानून जो हैं..!!

Tuesday, September 17, 2019

हकीकत

खींच लेगा कोई इस कदर,
क्या कोई ऐसी भी वजह है?

सोचा न था नियत बदलेगी,
मिलने में रखा क्या है..?

अजीब सा हो रहा है कुछ,
न जाने आखिर क्या है..?

खुमार है जुल्फों का, और,
आंखों से नशा दिया क्या है..?

ईमान डगमगा रहा मेरा,
तुमने देखो किया क्या है..?

खूबसूरत लग रही है,
कमबख्त ये कैसी ख़ता है..?

अंजुमन, जानता हूँ, बेरंग मेरा,
तेरे नाम की होली में रंगा है..!!

दिल में खलबली भी मची है
कुछ न होगा ये भी पता है..!

होगी बस हकीकत पेश्तर,
और सब रंग उड़ जाएंगे,
चंद अगले रोज़ में यही बदा है..!!

Monday, September 16, 2019

सौदे

रिश्ते में रही यूं बंदिश,

कि मेरे थे अश्क़,

और उसकी आँखों से निकले..!!

कैद में बीत गयी उम्र,
कौन अब सलाखों से निकले..?

इक्के दुक्के सिक्के,
कैसे लाखों के निकले..?

ठगे तो गए इश्क में लेकिन,
सौदे मुनाफों के निकले...!!

किसी न किसी ने तो,
पढ़े ही होंगे, वरना..!!

कैसे इतने खत
बिना लिफाफों के निकले...?

रसोई और कविताएं

तुम्हारे इंद्रधनुषी प्रेम ने,
मेरे हर काव्य को,
भिन्न स्वाद दिया..!!

कविताएं चटपटी,
चटखारेदार हैं,

मीठी भी, तीखी भी,
सीली सी कुछ,
कुछ गीली सी,
सूखी सी कुछ,
कुछ रसीली सी...!!

कोई बनारस हो गई,
कोई प्रयाग है,
किसी में शर्करा तो,
किसी मे मिर्चों की आग है..!!

देखो....तुम्हारी रसोई,
मेरी कविताओं में बस गयी..!!

Monday, September 2, 2019

सफ़ह-ऐ-इश्क़

तोड़ दी दीवार-ओ-नींव
तमने अपने ही हाथ, रिश्तों की,
फिर भी नुक्कड़ पे,
यादों का मकान बाकी है..!!

हमने भी अखलाक निभाया है,
दुनियावी जो थे चुका दिए,
रूहानी एक एहसान अभी बाकी है

कैसे सोच लिया कि,
मुकर के बच जाओगे..??

माना सब सफ़हे
हिफ़्ज़ हुए इश्क के लेकिन,
इक इम्तेहान अभी बाकी है..!!