तोड़ दी दीवार-ओ-नींव
तमने अपने ही हाथ, रिश्तों की,
फिर भी नुक्कड़ पे,
यादों का मकान बाकी है..!!
हमने भी अखलाक निभाया है,
दुनियावी जो थे चुका दिए,
रूहानी एक एहसान अभी बाकी है
कैसे सोच लिया कि,
मुकर के बच जाओगे..??
माना सब सफ़हे
हिफ़्ज़ हुए इश्क के लेकिन,
इक इम्तेहान अभी बाकी है..!!
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