Friday, June 28, 2019

महारत




एहसान चुकाएँ तो चुकाएं कैसे,
सब तो तुम्हारी अमानत है,
कर सका इतना ही, के तेरे दर्दों को,
साथ सहने की कोशिश की है..!

तेरी हमनवाई, इतनी बुलंद,
के खिलाफत, बेमतलब थी,
तो संग बहने की कोशिश की है..!!

इस हुनर का माहिर नही,
बस तेरा बयान-ऐ-दिल,
मैनें अपनी जुबां से,
कहने की कोशिश की है..!!!

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