Thursday, August 21, 2008

निर्झर


घटना वही पुरानी है,
पर अनुभव नया.....
समय फिर समय पथ पर गुज़र गया.........

ये निर्झर यूँ ही बहता रहेगा...........
प्रारब्ध की अप्रतिम कहानी,
कहता रहेगा.........

समय की कोख से,
कुछ और पल उतरेंगे.......
जीवन का थोड़ा सा जीवन,
और कुतरेंगे...........

इस सम्यक धरा - धारा में,
बस स्मृति शेष रहती है........

अस्पष्ट अकथ्य के,
कुछ भ्रंश भी मिल जाया करेंगे...........
जब भी गहरी पैठ लूँगा.........

प्रलय हो जब भी ये लय टूटे,
प्रश्नचिन्ह लगे हर रचना पर,
जब भी ये वलय टूटे..........

मैं चिंतन वन में
सुप्त, संज्ञा विहीन.........
चेतना हीन............
स्वयं में स्वयं को खोजता...........
मैं दिग्भ्रमित, मैं पथिक........

Saturday, August 16, 2008

मैं जिन्दगी का आइना हूँ.............


जिन्दगी की चमक देखी,
खुश्बू देखी, खूबसूरती भी..........

मासूमियत की महक देखी,
नन्हीं सी सितारा आँखें,
साँसों में मोहब्बत की नमी..........
तोतली, पर बेपनाह प्यारी बातें...........

ऊँगली पकड़, डगमगाती.......
चलने की कोशिश करती......
इठलाती, खिलखिलाती.........
और मुझमें उमंगों का समंदर भरती.......

मैं जिन्दगी का आइना हूँ, बिखरने न देना........
कहती रही..............
एक नन्ही बच्ची, मेरी गोद में खेलती रही.........

मैंने नाक से ऊँगली छू ली, तो हंस दी...........
यूँ तो शाम हो चली है पर,
मैं अब भी खोया हूँ, उलझा हूँ,

उसकी मासूमियत में,
अपनी जिन्दगी की तमाम सख्तियाँ भूल कर..................

Friday, August 8, 2008

गले मत लगना............

हाथ खीच के पियोगे,
तो मज़ा देगी।
कनीज़ है, गले मत लगना.............

काफिर तो बना चुकी,

मुफलिस भी बना देगी,
गले मत लगना..............

Saturday, August 2, 2008

इस से पहले कि.........

थकता हूँ, झुकता हूँ,

दो पल रुकता हूँ,

तो जेहन में उभर आते हो,

हाथों में ले कर हाथ, कहते हो........


बस कुछ कदम और,


जैसे जिन्दगी फ़िर से देती है,

कुछ साँसे उधार..............

चला आता हूँ तुम्हारी ओर,

पर छलावा बन कर,

फिर से क्यों दूर हो जाते हो................

जीवन के किसी अगले मोड़ पर खड़े मुस्कुराते हो,


तो रुक जाओ न,

बस दो पल

छू लेने दो, वो नाज़ुक होंठ,


इस से पहले, कि प्यास हद से गुज़र जाए,

और जाम-ऐ-जिंदगी, छलक जाए..............