Monday, September 27, 2021

कहां तक जाओगे 2

ये रिश्तों की पोटली,
ये नातों के तार,
ये उम्मीदों के महल
ये चाहतों के दयार

सम्हाले हुए हैं
हमने जैसे तैसे..!

ये तुम्हारी हसरतों के पुल
ये तुम्हारी उलझनों के बाम
ये चाहते बहुत सी
ये ख्वाहिशें तमाम

ये खयालों के दरख़्त
ये शिकवों के दरिया
ये उलझने तुम्हारी
ये शिकायतों का ज़रिया

सब सम्हाल रखा है हमने
इक अनचाही गांठ बन कर
वही गांठ जो खुल गई
तो सब बह जाएगा
फिसल जायेगा वक्त,
तुम्हारी मुट्ठी से,
सब धरा का धरा रह जायेगा.!

किसको कोसोगे?
क्या पछताओगे?
जब जहां चुक जायेगा?
बताओ, कहां जाओगे?

Sunday, September 5, 2021

कहां तक जाओगे 1

किस से उलझोगे,
कहां सर टकराओगे,
अकेले चल तो दिए हो,
सोचा है कहां तक जाओगे?

चीखें पलट कर सुनाई देंगी,
जब भी मुस्कुराओगे,
जिस फैसले पे नाज़ है,
कल उसी पे पछताओगे,

ये जुल्फें, पलकें, शोखियां,
सब महज़ छलावे हैं,
इन से दिल लगाओगे?

दिखा दिया है,
तुमने रास्ता जिसे बाहर का,
उसे दस्तरख्वान पे बिठाओगे..!

जबरन अल्फाज,
सजा देती है जुबां पे,
तुम भी जिंदगी का ही,
नगमा गुनगुनाओगे..!!

अकेले चल तो दिए हो,
सोचा है कहां तक जाओगे?

दामन निचोड़ दिया मैने।

तकलीफ होती है
सांस आने में,

ये सुन के उसे,
बाहों में भरना छोड़ दिया मैंने

उसका अक्स झलक रहा था,
आइना तोड़ दिया मैने

उसके अश्कों के दाग़ों का,
उधार रह गया था बाकी,
दामन निचोड़ दिया मैने..!

सागर उफन जायेगा,
घबरा के दरिया ही,
मोड़ दिया मैने..!!

सिफर हो गया सौदा,
सब पाना था,
तो सब छोड़ दिया मैने..!!

अब छा रहा है वो,
सब आसमान बन कर,
जब खुद को दो गज में,
सिकोड़ दिया मैने..!

दाग़ बाकी रह गया था,
दामन निचोड़ दिया मैने।