Tuesday, September 23, 2014

यहाँ न आये कोई....

सब के चेहरों पे सिल दो,
मातमी लिबास,
अब न मुस्कुराये कोई.… 

दर बंद हैं,
हर ख़ुशी के लिए,
उनसे भी कह दो,
यहाँ न आये कोई.... 

हम बड़े बेआबरू हो,
निकले हैं,
उनकी महफ़िल से,
दुआ है, अब,
महफ़िल में न बुलाये कोई.... 

तुम्हारे तंज़ चुभते हैं,
गुलदस्तों से निकल कर,
मेरी कब्र पे,
फूलों को चादर,
न चढ़ाये कोई.... 

नग़मे हैं कि,
दिल की पीर हो गए,
सुकूं है बहुत यहाँ,
जमीदोज हो कर,
कहो कि, मोहब्बतें,
 गुनगुनाये कोई.…

बड़ी मुश्किल से,
पड़ी है आदत,
कह दो फ़िक्र मंदों को,
खैरख्वाह बन के,
ना आये कोइ……

मुझसे भी पूछ लेती,
हाले दिल दुनिया,
तो रिश्तों का तस्सवुर हो जाता,
मिल के अपना ही,
 हाल सुनाये सभी.…

कभी रोती है,
तो कभी हंसती है,
कभी देखे है गुमसुम,
तो मेरी किस्मत,
मुस्कुराये कभी.……