Thursday, October 17, 2019

किसी तरह

हर चाहने वाला मेरा,
दीदावर है,
किसी न किसी तरह..!!

हां यूं तो बेअसर हूँ,
पर बडा असर है तुझपे,
किसी न किसी तरह...!!

जिंदगी बाकायदा अंधेरी है,
पर जब से तू है, दोपहर है,
किसी न किसी तरह..!!

सिर्फ शाम कहा जाता था मैं,
पर ये कैसे हुआ?
सहर है किसी न किसी तरह?

पगडंडियां सब खो गयीं,
राह भटका था मैं,
तेरे मिलने से कैसे?
रहगुज़र है किसी तरह..?

इश्क़ की बात कर

दूरियों का ज़िक्र न कर,
पास आने की बात कर

हार जाने का न नाम ले अब
तेरे कहने से उलझ गया हूँ,
अब लड़ रहा हूँ हर सवाल से,
तो जीत जाने की बात कर....!

जियें या कुर्बान हो जाएं,
फैसला मुश्किल नही,
मुलाकात की बात कर...!

सहरा में भटकने वाला आदम हूँ,
प्यास की बात कर,
पानी की बात कर..!!

बेरुखी रही है, किस्मत हमेशा,
नज़दीकियों की बात कर,
अब सिर्फ इश्क की बात कर..!!