हर चाहने वाला मेरा,
दीदावर है,
किसी न किसी तरह..!!
हां यूं तो बेअसर हूँ,
पर बडा असर है तुझपे,
किसी न किसी तरह...!!
जिंदगी बाकायदा अंधेरी है,
पर जब से तू है, दोपहर है,
किसी न किसी तरह..!!
सिर्फ शाम कहा जाता था मैं,
पर ये कैसे हुआ?
सहर है किसी न किसी तरह?
पगडंडियां सब खो गयीं,
राह भटका था मैं,
तेरे मिलने से कैसे?
रहगुज़र है किसी तरह..?