Saturday, November 30, 2019

कोई..!

वो जो लाख सितारों को भी,
"एक" गिनता है, उसकी,
तन्हाई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

इक कतरे से जो समंदर हो गया,
उसकी,
गहराई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

ख़ाक कर दिया खुद जहां अपना,
बेहिसी, बेखयाली, बदहाली का,
उसकी अंदाज़ा लगाए कोई....!

बेवफाई तक से मोहब्बत हुई जिसे,
उसकी,
आशनाई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

जन्नत ओ खुदा से भी नफरत हो गई जिसे,
उसकी,
रुसवाई का अंदाज़ा लगाए कोई..!

ज़माना तो सारा खिलाफ निकला,
कोई एक अपना,
कभी तो कहलाए कोई..!

भटका है हां वो बहुत,
बस फिकरे ही कसने?
या राह भी बताए कोई..?

हां बदकिस्मती हमनवा हुई मुद्दतों,
काश, खुशकिस्मती भी,
उसका दरवाजा खटखटाए कोई...!!

ग़मजदा उम्र बीती सारी,
खुशनुमा ग़ज़ल इक,
उसकी खातिर गुनगुनाए कोई..!!

"अंतस" को भी मिल जाए मर्तबा,
काश कोई राह से भटक जाए,
मुझे भी सुबह का भूला मिल जाए कोई..!

Monday, November 4, 2019

अब जब भी शुबहा हो..!

मेरी अजीब हरकतों,
उलटे पुलटे जवाबों से,
आजिज़ आई मेरी जान...।

एक खट्टी सी बात,
और कसैली सी,
रात के बाद.....।

सुबह
जब उनींदी पलकों को,
क़यामत बना कर.....।

अधूरे ख्वाब,
अपनी अंगड़ाई में झटक कर
तकिये पे बिखेर दे।

तो ऐ सुबह उसके गाल पर,
एक नरम सा बोसा देना...।

सुना है मौसम सर्द है
तो ऐ ओस की बूंदों,

जाओ...

उसके रुखसार पे,
गुलाबों की ताज़गी मल के...
मेरी निगाह से जी भर देखना...।

जब वो शर्मा कर,
हथेलियों में ढक ले अपना चेहरा...
तो, ऐ हवा सुन...!

मत छेड़ना उसे।
उसकी नाक लाल हो जाती है।

बेशक उसका गुस्सा काफूर हो जाये।
पर फिर भी,

मेरी धड़कनो,
जाओ उसको कहना

तुम तो खफा हो कर सोती रही
मैं रात भर जागता रहा....!

पर सुबह
वैसा ही मिलूंगा
जैसा मैं उसे मिला था।
सबसे पहली बार...!!



मैं कल से आज तक

लबादा ओढ़ के चलता हूँ
मुस्कुराहटों का
कहीं किसी को हालत मेरी
'उसकी' कारगुज़ारी न लगे,

बंटा देता हूँ हाथ
के किसी को भी 
उसका दर्द भारी न लगे,

लाओ दे दो अपनी मुश्किल
और मैं अपना लूं इस तरह
कि अब तुम्हारी न लगे,

कोई हारा है इस कदर
की मौत का गुलाम है, फिर भी..!
कटी है जिसकी सारी जुए में
वो ज़िन्दगी का जुआरी न लगे..!

दुआ में अब यही
की दिल मिले सबको
बस किसी को दिल की
बीमारी न लगे..!

देखा न गया

मसाजिदों में फेक
"जानवर" की लाश
कर दिया जहाँ को
लपटों के हवाले
दरिंदो से इंसानियत
खुश देखी न गयी.....!!

तोड़ दिया दम
दौरान-ए-जचगी
एक गरीब मा ने..!
रईसों के बनाए,
इक गरीब हस्पताल के आगे..!!

झक कोट वाले दुनियावी
खुदाओं में फिर
सूरत-ए-खुदा देखी न गई।

दौड़ती रही अंधी दुनिया
भरी दोपहर सड़क किनारे
और लाश पर दुधमुँहा
तड़पता रहा मासूम..!!

बैठ गई गाय
बच्चे के मुह थन लगा के
उस से जब देखा न गया।

दर-ए-मसाजिद मिली
कि पण्डे के हाथ,
बाहर गिरजे के पाई
कि लंगर में छक ली

रोटी थी
मुझसे उसका मज़हब देखा न गया...!

मौसम सा सनम

जानता हूँ, आँसुओं की ख़ास,
क़ीमत नहीं कोई,
तो मुस्कुराता रहा.....!!!

कराहना मेरा,
क्या भाता किसी को?
दर्द रहा तो भी,
गुनगुनाता रहा..!!!!

वो घर जला गए मेरा,
अपने उजाले की ख़ातिर,

पर हमारी उम्मीद का,
एक दिया,
ना जाने कैसे,
टिमटिमाता रहा...!!!

मातमपुर्सी की आवाज़ें,
यूँ तो हमें अपने गुज़रने की,
ख़बर दे गयीं,

उस कफ़न को,
कुछ और ही मुहब्बत थी,
के पूरा मरने ना दिया,

पैरों से लग के,
ना जाने क्यों,
फड़फड़ाता रहा...!!!

ना ख़ुद को क़रार आया उसे,
ना हमे ही मुकम्मल होने दिया,
सनम जो मौसम सा हुआ,
आता रहा जाता रहा...!!

फिरकी

कम्बख्त इश्क ने,
बेवक़्त कत्ल कर दिया हमे,
वरना लकीर-ऐ-उम्र,
बड़ी लंबी थी हमारी....!!

उसकी मोहब्बत में,
पलट न सके बाज़ी ये,
ज़िन्दगी बेहतर भी,
हो सकती थी हमारी....!

हश्र दर्द-ओ-ग़म से,
सराबोर था ये सारा..!!
उतरी जब इश्क की खुमारी..!

क्या कमाल का वक़्त रहा?
बीमारी को इलाज समझते रहे,
ज़िंदगी को समझा बीमारी..!!

गुमां था के हमने वक़्त को,
तिगनी नचाई,
क्या पता था, वक़्त ने,
ली फिरकी हमारी...!

क्यों है?


हर किसी को मुझसे,
इतनी उम्मीद क्यों है,

मैं ही मानूं, मैं ही समझूं,
सिर्फ इतना ही नसीब क्यों है?

गर खुशी भी है वज़ूद में,
तो सिर्फ दर्द करीब क्यों है..?

ये टूट टूट कर आते हैं पल,
क्यों चिंदी चिंदी राहतों के,
उलट इसके, मुश्किलों में,
ये मुसलसल तरतीब क्यों है?

कुर्बान कर के खुद को भी,
मर्तबा हासिल न हुआ,
अंतस इतना बदनसीब क्यों है?

न वक़्त समझ आये न सनम,
ये लम्हा इतना अजीब क्यों है?

दावा


उनका दावा है,
बदल गए हैं हम..!!

खबर नही उनको,
भीतर से मर गए हैं हम..!!

कितना वक़्त दिया,
उनको बस इतनी फिक्र..!!
कहाँ इसकी के,
किन हालात से गुज़र गए हैं हम..?

ये दो वजहों ने सब बर्बाद किया,
एक नासमझी, एक वहम..!!

उनकी नज़र बस,
उनके खयाल कीमती..।
खामखां हमारा वजूद,
और खामखां हम..!!

लिए सूखी आंखों में अश्क़ नम,
वाहियात निकला ये जनम..!

गुल ओ किमाम वजूद

इस उम्मीद से कि,
पानी छन्न से टूट जाएगा..!
वो सैकड़ों पत्थर,
तालाब में फेकता रहा..!!

गर्माहट-ऐ-इश्क़ में कहाँ,
दिलचस्पी थी उसकी..??
वो तो बस मतलब की
रोटियां सेकता रहा..!!

शिद्दतों की गहराई,
बिल्कुल न थी उसमे...!!
आंखों में सागर लिए,
मुड़ चला मैं जब,
वो बस बैठा देखता रहा..!

कहां तो उसने,
अपने अरमानो की,
हर आग ठंडी कर ली..!!
यहां सदियों हमारा ये जिस्म,
बस दहकता रहा..!!

मिटा देने को वजूद बेदर्दी से,
मसल दिया पैरों तले..!
ये कमबख्त,
गुल-ओ-किमाम निकला
बरसों महकता रहा....!!!

वो वर्दियों वाले लोग..!

जाने किस मिट्टी के बने थे,
अंधेरी वतन की रात को,
नई सहर कर गए..!!

वतन वाले सुकूं से पहुंचे घर,
जब शहीद शमशान भी,
रोशन कर गए..!!

आईं जब गोलियों की आवाज़ें,
सफेद कुर्तों वाले, छुप गए,
सबसे पहले डर गए..!!

सिक्केबाज़ों की साजिशों के,
शिकार हैं, जान कर भी,
वो हर हद से गुज़र गए...!!

यहां बदल गए थे घर, और लोग,
जब वो वर्दियों के लोग,
लौट अपने शहर गए..!!

बड़े एहसान फरामोश निकले,
ये ऊंचे लोग, जब आन पड़ी,
चालाकी से मुकर गए..!!

ये फौज़ प्यादों से ज्यादा नहीं,
इन फरामोशों की नजर,

देखी जब हकीकत तो
मेरे खयाल तक ठहर गए..!!

हमारी गफलतों ठीकरे,
खुद ले लिए, आज़ादी,
हर सुबह तुम्हारी नज़र कर गए....!!

जिस्म इक को बचाने की,
जद्दोजहद थी बड़ी,
बच भी गया, बदले में,
लेकिन लाखों सर गए.....!!

शायद दूसरा भी किनारा हो?

सूखे ये वक़्त की नदी
तो दिखे, उस पार,
शायद दूसरा भी किनारा हो..!

इस ढहते वजूद का भी,
कोई तो सहारा हो..!!

हो ना हो वाकई,
चलो कहने को ही हो,
कोई तो हमारा हो..?

ढो लिया मोहब्बत को बहुत,
अब उतार दें ये बोझ दिल से,
हुक्काम ए इश्क का
फकत एक इशारा हो...!!

हम तो रोज़ ही रुसवा हैं,
सुकूं अफ्तारी भी हो थोड़ी..!
हां, शर्मिंदगी का तुम्हारी भी,
कभी महफ़िल में कोई नजारा हो..?

तुम भरे जाओ जाम पे जाम,
और गम ए सागर हम पीते रहे,
फिर हलक भी सूखा ही रहा..!
भला यूं कैसे गुजारा हो..?

माना ये सब दरम्यान है,
पर भला हम कहां हैं इसमें?
के इब्तेदा भी तुम्हारी,
अंजाम भी तुम्हारा हो..?

नागवार लगी हमें उम्र सारी,
हमने कुछ यूं गुज़ारी....!
गोया कोई एहसान उतारा हो...!!

पड़ा मिले राह में कोई,
तो पहुंचा देना घर तक,
शायद उसको भी,
किसी ने तड़पा के मारा हो..!

क्या है?

बड़ी दिलचस्पी है तुम्हे,
हमारे हाल-ओ-हालात में..!!
वजह क्या है..?

सब तो खोल दिए हैं,
बंधन के खयाल में क्यों हो,
बची अब गिरह क्या है..?

तुमने तो मिलन के,
जलसों में यकीं रखा है,
फिर एक ये विरह क्या है..??

खो दिया है गर,
अम्न- ओ- सूकूं,
माने हार गए,
फिर भी दामन में लिपटी
वो फतेह सी क्या है..?

कहां तो कोई कशिश बाकी न थी,
फिर ये शिद्दत ये जुनून,
बेतरह क्या है..???

जुदा जब हो ही चुके,
तो ये कुछ ज़रा सा,
जुड़ा क्या है......??

Thursday, October 17, 2019

किसी तरह

हर चाहने वाला मेरा,
दीदावर है,
किसी न किसी तरह..!!

हां यूं तो बेअसर हूँ,
पर बडा असर है तुझपे,
किसी न किसी तरह...!!

जिंदगी बाकायदा अंधेरी है,
पर जब से तू है, दोपहर है,
किसी न किसी तरह..!!

सिर्फ शाम कहा जाता था मैं,
पर ये कैसे हुआ?
सहर है किसी न किसी तरह?

पगडंडियां सब खो गयीं,
राह भटका था मैं,
तेरे मिलने से कैसे?
रहगुज़र है किसी तरह..?

इश्क़ की बात कर

दूरियों का ज़िक्र न कर,
पास आने की बात कर

हार जाने का न नाम ले अब
तेरे कहने से उलझ गया हूँ,
अब लड़ रहा हूँ हर सवाल से,
तो जीत जाने की बात कर....!

जियें या कुर्बान हो जाएं,
फैसला मुश्किल नही,
मुलाकात की बात कर...!

सहरा में भटकने वाला आदम हूँ,
प्यास की बात कर,
पानी की बात कर..!!

बेरुखी रही है, किस्मत हमेशा,
नज़दीकियों की बात कर,
अब सिर्फ इश्क की बात कर..!!

Thursday, September 19, 2019

मायने

सूख तो जाने ही हैं ज़ख्म सब,
सर पे तपता सूरज एक ओर,
उधर बहता मुसलसल ख़ून जो है..!!

क्या हुआ जो फ़ना भी हुए,
देखो जिहाद हासिल है..!
कुछ अजीब ही है ये,
वतन का जुनून जो है..!!

हमने वतनपरस्ती के,
मायने तक बदल डाले,
तुम भी बदलो ये,
सड़ते गलते कानून जो हैं..!!

Tuesday, September 17, 2019

हकीकत

खींच लेगा कोई इस कदर,
क्या कोई ऐसी भी वजह है?

सोचा न था नियत बदलेगी,
मिलने में रखा क्या है..?

अजीब सा हो रहा है कुछ,
न जाने आखिर क्या है..?

खुमार है जुल्फों का, और,
आंखों से नशा दिया क्या है..?

ईमान डगमगा रहा मेरा,
तुमने देखो किया क्या है..?

खूबसूरत लग रही है,
कमबख्त ये कैसी ख़ता है..?

अंजुमन, जानता हूँ, बेरंग मेरा,
तेरे नाम की होली में रंगा है..!!

दिल में खलबली भी मची है
कुछ न होगा ये भी पता है..!

होगी बस हकीकत पेश्तर,
और सब रंग उड़ जाएंगे,
चंद अगले रोज़ में यही बदा है..!!

Monday, September 16, 2019

सौदे

रिश्ते में रही यूं बंदिश,

कि मेरे थे अश्क़,

और उसकी आँखों से निकले..!!

कैद में बीत गयी उम्र,
कौन अब सलाखों से निकले..?

इक्के दुक्के सिक्के,
कैसे लाखों के निकले..?

ठगे तो गए इश्क में लेकिन,
सौदे मुनाफों के निकले...!!

किसी न किसी ने तो,
पढ़े ही होंगे, वरना..!!

कैसे इतने खत
बिना लिफाफों के निकले...?

रसोई और कविताएं

तुम्हारे इंद्रधनुषी प्रेम ने,
मेरे हर काव्य को,
भिन्न स्वाद दिया..!!

कविताएं चटपटी,
चटखारेदार हैं,

मीठी भी, तीखी भी,
सीली सी कुछ,
कुछ गीली सी,
सूखी सी कुछ,
कुछ रसीली सी...!!

कोई बनारस हो गई,
कोई प्रयाग है,
किसी में शर्करा तो,
किसी मे मिर्चों की आग है..!!

देखो....तुम्हारी रसोई,
मेरी कविताओं में बस गयी..!!

Monday, September 2, 2019

सफ़ह-ऐ-इश्क़

तोड़ दी दीवार-ओ-नींव
तमने अपने ही हाथ, रिश्तों की,
फिर भी नुक्कड़ पे,
यादों का मकान बाकी है..!!

हमने भी अखलाक निभाया है,
दुनियावी जो थे चुका दिए,
रूहानी एक एहसान अभी बाकी है

कैसे सोच लिया कि,
मुकर के बच जाओगे..??

माना सब सफ़हे
हिफ़्ज़ हुए इश्क के लेकिन,
इक इम्तेहान अभी बाकी है..!!

Friday, June 28, 2019

महारत




एहसान चुकाएँ तो चुकाएं कैसे,
सब तो तुम्हारी अमानत है,
कर सका इतना ही, के तेरे दर्दों को,
साथ सहने की कोशिश की है..!

तेरी हमनवाई, इतनी बुलंद,
के खिलाफत, बेमतलब थी,
तो संग बहने की कोशिश की है..!!

इस हुनर का माहिर नही,
बस तेरा बयान-ऐ-दिल,
मैनें अपनी जुबां से,
कहने की कोशिश की है..!!!

Thursday, June 27, 2019

तोहफा-ऐ-तवारीख़




नसीब वाली होती हैं,
उन घरों की ईंटें तक..!!

बेटियों की किलकारियां,
जिनमे गूंजी होती हैं...!!

मजबूर-ऐ-मोहब्बत, उस रब ने,
बुत... बेटी का बनाया,
फिर झुक के खुद,
कदम चूम लिए खुदा ने...!!

ऐ बशर नादां-ओ-बेपरवाह,
कम से कम बेटियों के,
इस मर्तबे की तो कद्र कर..!!!

सुबहा


भला कहाँ छुपा है ये राज अब?
पैरहन अपने लहू में भिगो दिया है..।

भला ऐसे कैसे हुआ कि हम,
बावफ़ा भी रहे, दग़ा भी दिया है..?

सुनो कुछ शक है हमें इस रिश्ते पे,
घर बनाया भी, उजाड़ भी दिया है...!!

जब सब खो दिया है, फिर भी,
मज़ार-ए-रूह में तेरे नाम का दिया है...!!

Wednesday, June 26, 2019

फकीराना रईसी


रोशन जगमग घरों में,
पसरा सन्नाटा है,
मातमी उदासी है,

निगल रही है साँसों को,
चाट रही है लम्हों को,
रूह इस कदर प्यासी है..!

पल भर अपने ही बेटे को
थपथपाने का वक़्त नहीं,
उन कलाइयों के पास.....

जिनकी घड़ियों पे,
हीरों की नक्काशी है...!!

Thursday, June 20, 2019

क्यों

हां तुम हो,
एक बड़ा प्रश्न...!!

जिसके जवाब,
ढूंढता रहता हूँ...!!!

पर और भी बड़ा प्रश्न
के आखिर हम,
हैं ही क्यों...!!

बस यही विरक्तिदोष है...!!

Wednesday, June 19, 2019

तेरा पता..!!

मैने आदम दिलों, बुतों,
संग-ओ-फौलाद,
को पिघलते देखा..!!!

तू बच्चों की किलकारियों
में ही बसा है कहीं...!!!

Tuesday, June 18, 2019

हाल-ऐ-शब

तेरी यादों को,
अक्सर अशआर बना कर,
कागज़ में लपेट,
डायरी में बंद कर देता हूँ..!!

सोचता हूँ अक्सर,
के वो ख़याल,
जिसे दफना दिया,
दोबारा पेशतर न होगा..!!

लेकिन चौराहे के खंभे सा,
रोज़ मेरे वजूद के आगे,
खड़ा हो कर,
तेरी वफाओं का सिला मांगता है..!!

मैं नजर झुकाये,
बच के निकलने की,
कोशिश में रोज़,
उलझ जाता हूँ,
तेरी यादों की डयोढ़ी पे..!!

फिर ये लम्हे,
सर पटक पटक के,
मातम करते हैं,
तेरे मेरे किस्से का..!!

और हां, तेरी यादों की,
मजलिस भी बैठती है,
हर रोज़, मेरे संग दीवान पे,
तो.. ये हाल है मेरी रातों का..!!

Saturday, June 15, 2019

करतब

ग़म-ऐ-दिल बेशक,
तुम्हारा, बड़ा है बहुत,

लेकिन कभी क्या,
किसी तंगहाल से मिले हो?

तलाशोगे, तो उसकी भूख में,
दर्द की नई गहरायी मिलेगी..!!

वो नट बन के पैदा न हुए,
न मजमगार थे उनके पुरखे,

ये करतब तो सब,
पेट की आग कराती है..!!

ढपली की थाप पे,
उसका राग नही है ये,
ये भूख का दर्द है,
जो तान बन के निकला..!!

मुरमुरे बेचना चाहा कब,
उम्र तो उसकी खाने की थी,

उनकी तंगहाली तो बस नतीजा है,
तलब तुम्हे ख़ज़ाने की थी..!!

Thursday, June 13, 2019

वो

उसने कहा 'सुनो'
और कदम थम गये..!!

फिर ज़िन्दगी गुजरी,
हम वहीं रह गये..!!

उसने कहा 'चलो'
हम चल दिये,

दरम्यां सितारों के,
आज मकां हमारा है..!!

उसने कहा 'बस'
और सांसे थम गयीं..!!

तुरबत है, कब्र है,
कुछ सूखे फूल हैं..!!

Tuesday, June 11, 2019

रिश्ता

दिल ओ दुनिया के बीच,
मेरा रिश्ता तू ही तो है

लौटा दिया ग़मे दहलीज़ से,
फरिश्ता तू ही तो है,

गुज़रा सारा जहां बेहिसाब जब,
आहिस्ता तू ही तो है

कहाँ रही फिक्र मेरी किसी को,
एक बाबस्ता तू ही तो है..!!

खंजर

आदम ओ दुनिया की,
अब बात मत कर,
मैने ग़मों का समंदर देखा है,

तेरी झील झील आंखों में,
किसी और के नाम का
मंज़र देखा है..!!

जीने की ख्वाहिश कैसे भला?
हाथ में तेरे, मैनें अपने नाम का,
खंज़र देखा है..!!

मंज़िल

आराम लेने नही देता दिल,
इसे जीने का जतन बहुत है,

तेरे एहसान कैसे ओढूं बता?
ये झीना पैरहन भी बहुत है..!!

उतार ले इसे अब जिस्म से,
इस रूह का वजन बहुत है..!!

गुलशन की अब खाक ख्वाहिश?
कांटो का ये अंजुमन बहुत है..!!

बशर जाएगा भी कहाँ आखिर,
दो गज़ का वतन बहुत है..!!

खामोशियाँ

मेरी खामोशियां,
गूंज कर बहरी हो गयीं,
उसी कमरे में जहां,
हमारी मोहब्बत सोती रही..!!

अब सूख चुकी तो,
पोंछने का क्या फायदा,
यही है वो आंख जो,
उम्र भर रोती रही..!!

तुम्हारे सेहरा में जब,
खिल रहे थे वफ़ा के फूल,
आग बारिश की मेरे जिस्म को,
बरसों भिगोती रही..!!

तुम क्या गए, पीछे से,
मुकद्दर भी ले गए,
मेरी किस्मत ताउम्र फिर,
तेरी ड्योढी पे रोती रही..!!

यही है वो आंख जो,
उम्र भर रोती रही..!!

Monday, June 10, 2019

दलदल

सैकड़ों हज़ारों,
बेघर चले आते हैं,
इन गली कूचों में ही,
कहीं समा जाते हैं....!!

गाँवों को समूचा,
निगल रहे हैं...!
हर रोज़, शहर,
दलदल हो रहे हैं...!!

खता

खता दिल की थी,
चोट जिस्म ने खायी,
शमशीर-ओ-तलवार,
सह रहा है...!!

कट ही जायेंगे,
ये लम्हे हिज़्र के,
कहीं भीतर दिल,
ये कह रहा है....!!

बात दीगर है की,
जिस्म के, हर गोशे से,
मानिंद-ऐ-आब,
लहू बह रहा है...!!

माद्दा

माद्दा निभा जाने में है,
हारने में नहीं,
चमन को गुलज़ार रखे,
असल दीदावर वही....!

ज़माने की  कसौटियों पे,
खरी है बात,
तेरी नज़र में गलत,
और ज़रा सी सही.....!

लड़....! के बुलबुलें आज़ादी मांगती हैं,
कोहराम तेरा...खामोशी नहीं..!

Saturday, June 8, 2019

फीका विश्व

अर्थ, राज्य, देश परदेश,
राग रंग, प्रेम द्वेष,
ईश्वर की सत्ता,
धर्म की कसौटियां,
दर्शन और माहात्म्य,
सब फीके हैं.....!!

सुबह सुबह बच्चों को,
भूख से बिलखते देखा है...!
 

खूबसूरत मोड़

बेबसी को उसकी,
एक खूबसूरत मोड़ दिया,

खातिर-ऐ-क़त्ल,
जब खंज़र उठाया उसने,

हमने खुद को,
ढीला छोड़ दिया......!

नकाब

हसरतों की पेशानी पे,
ये बिखरा सा ख्वाब क्यों है?

क्या छुपाये हो दिल में,
चेहरे पे हंसी का नकाब क्यों है?

मिलता था जो इत्मीनान से,
वो शख्स बेताब क्यों है?

क्या छुपाये बैठे हो,
ये हंसी का नकाब क्यों है?

साथ

रोज़-ऐ - क़यामत तक,
साथ का वादा करने वाले,
दस्त-ऐ-ख्वाहिश, मजबूर हो गए....!

जाते थमा गए अरमा हज़ारों,
जो ये मुट्ठी कस दी जरा सी,
ख्वाब, सब वो चूर हो गए....!

शीशा-ऐ-दिल टूटने का "अंतस",
जश्न यूं मनाया फिर हमने,
"दीवाने" मशहूर हो गए...........!!!

भूलना



तुमको चाहना तो सिर्फ दुश्वार था,
पर भूलना तो कोई जंग हो जैसे !

खुद से मिलना भूल गए

कुछ यूं बनाया संगदिल उसने,
दर्द में गैरों के पिघलना भूल गए,

लतखोरी ऐसी रही इश्क़ की,
घर से भी निकलना भूल गए,

फिर कातिल से मिले हर रोज़,
बस खुद से मिलना भूल गए....!!