मेरी अजीब हरकतों,
उलटे पुलटे जवाबों से,
आजिज़ आई मेरी जान...।
एक खट्टी सी बात,
और कसैली सी,
रात के बाद.....।
सुबह
जब उनींदी पलकों को,
क़यामत बना कर.....।
अधूरे ख्वाब,
अपनी अंगड़ाई में झटक कर
तकिये पे बिखेर दे।
तो ऐ सुबह उसके गाल पर,
एक नरम सा बोसा देना...।
सुना है मौसम सर्द है
तो ऐ ओस की बूंदों,
जाओ...
उसके रुखसार पे,
गुलाबों की ताज़गी मल के...
मेरी निगाह से जी भर देखना...।
जब वो शर्मा कर,
हथेलियों में ढक ले अपना चेहरा...
तो, ऐ हवा सुन...!
मत छेड़ना उसे।
उसकी नाक लाल हो जाती है।
बेशक उसका गुस्सा काफूर हो जाये।
पर फिर भी,
मेरी धड़कनो,
जाओ उसको कहना
तुम तो खफा हो कर सोती रही
मैं रात भर जागता रहा....!
पर सुबह
वैसा ही मिलूंगा
जैसा मैं उसे मिला था।
सबसे पहली बार...!!
2 comments:
बहुत खूब ... प्रभावी रचना ...
🙏
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