Monday, November 4, 2019

क्यों है?


हर किसी को मुझसे,
इतनी उम्मीद क्यों है,

मैं ही मानूं, मैं ही समझूं,
सिर्फ इतना ही नसीब क्यों है?

गर खुशी भी है वज़ूद में,
तो सिर्फ दर्द करीब क्यों है..?

ये टूट टूट कर आते हैं पल,
क्यों चिंदी चिंदी राहतों के,
उलट इसके, मुश्किलों में,
ये मुसलसल तरतीब क्यों है?

कुर्बान कर के खुद को भी,
मर्तबा हासिल न हुआ,
अंतस इतना बदनसीब क्यों है?

न वक़्त समझ आये न सनम,
ये लम्हा इतना अजीब क्यों है?

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