Tuesday, December 8, 2009

वफ़ा की वो बू………..

हमे कर के किर्चा किर्चा…..
टुकड़े टुकड़े............

वो सोने चले जाते हैं....!

उनको नींद जाती है.....?

ये बात हमको समझ नही आती.....!

यू तो अब तक ये गुल--मोब्बत है,
पर अब इस से वफ़ा की वो बू नही आती........!