Thursday, December 20, 2012

खुद भी सहा है, लोगों से भी सुना है......

विद्रोह है या विरक्ति?
या बस मन ही अनमना है?

यूं तो ज़रा सा है,
पर पहले से कई गुना है।

खुद भी सहा है,
लोगों से भी सुना है।

तुम जैसे, सब के जैसे,
ये जाल मैंने भी खुद बुना है।

उलझने हैं, परेशानियां हैं,
हसरतें हैं, हैरानियां हैं,

अफसाने हैं, कहानियां हैं,
तरफ़ एक हम हैं,
इक तरफ़ दुनिया है।

और बेबसी का मंज़र रूबरू,
तुम जैसे ही मैंने भी चुना है।

खुद भी सहा है,
लोगों से भी सुना है।

आदतन इंसानियत सब मे,
पर दिल सब मे अनसुना है।

खुद भी सहा है,
लोगों से भी....हमने सुना है......।