Tuesday, May 31, 2016

तुम...हाँ तुम...!

जब न करना चाहूँ
सबसे ज्यादा याद आती हो तुम..

मैं उदास होता हूँ
और मुस्कुराती हो तुम

कभी कभी यूं भी
दिल बहलाती हो तुम...

इंतज़ार होता है न जाने किसका
और ख्वाबों में आती हो तुम..

इधर उठता है धुआं दिल से मेरे
और उधर इठलाती हो तुम...

कभी यूं भी होता है
की शाम होती है बेहद अँधेरी...फिर
अपनी यादों का
दिया जलाती हो तुम

मेरी अहमियत ज्यादा नहीं
फिर भी मेरे वज़ूद में हो
क्यों मुझसे इतना जुड़ जाती हो तुम

कभी कभी
बहुत याद आती हो तुम....!

Monday, May 2, 2016

जागें फिर से...

चलो फिर से
आज़ादी की कहानी लिखें

लिखें तो नयी लिखें
क्या नए मुलम्मे में पुरानी लिखें

जहाँ मज़हबों की आंच
ठंडी पड़ी है, ऐसी बारिशों की
शाम सुहानी लिखें

तुमने अपनी जवानी ज़ाया कर दी
मंदिर मसाजिद के फेर में
हम क्यों उसी लकीर पे
अपनी जवानी लिखें

थोडा आबे जमजम लिखें
थोडा गंगा का पानी लिखें
फिरकों को दफ़न करो
आओ कुछ रूहानी लिखें

निकलो सियासती बुज़ुर्गो
हमारी संसद से
हटो के हम आते हैं
नज़र ऐ वतन नौजवानी लिखें

तुमने कैसे चूसा है खून सियासत में
बता देंगे अब, और ये भी
के बस इक अम्न खातिर
कितनी हमने ख़ाक छानी लिखे

दंगों के दहकते शोलों को हटा
नरम गोद दें माओं को
जख्म ले के बहनों के
किस्मतों में उनके रातरानी लिखें

उठ के बच्चा कोई
न बिलखे दूध खातिर
न फिक्रमंद हो अवाम भूखे सोने की
कभी तो ऐसी सुबह सुहानी लिखें

Sunday, May 1, 2016

हालात

बहाने से ले के हिजाब की ओट
बैठी है मेरी मा, के चेहरे पे
बाप की मर्दानगी के निशान दिखते हैं

मेरे मोहल्ले में भी,
खुदा नहीं दिखता,
खुदाई नहीं दिखती
सिर्फ हदीस-ओ-कुरआन दिखते हैं

ये कैसा मज़हब है?
और कैसा मुल्क है
हैवान की फितरत में डूबे
इंसान दिखते हैं

उनको अय्याशी,
हमें मजदूरी की आदत
लेकिन वो,
हमारे दड़बे की रौशनी से
परेशान दिखते हैं

हक़ की बात न करो बुर्कानशीनो
मज़्ज़म्मत न बुलाओ अपनी
अजब अदालतें है इस मुल्क की
यहाँ एहसान में लिपटे,
खूनी फरमान लिखते हैं

यूं गिरियां, तोहमतें न लगा
चुप रह, इक इब्रत क्या काफी नहीं
तेरे ज़ूद एहसास के खातिर
क्या तुझे नहीं इस मुल्क के
मुर्दा जवान दिखते हैं

इस अब्तर नस्ल की खैर
लेने न आएगा कोई
हमसे ले गए जो बुलंदियां
उनको पैरों तले जमी अब याद नहीं
सिर्फ आसमान दिखते हैं

आओ गमख़्वार हो जाएँ
हम एक दूजे के ही
कहाँ अब इस गोशे में
वो मज़हब के ठेकेदार
वो हुक्मरान दिखते हैं


शब्दकोष मदद के लिए

गिरियां- चीखना चिल्लाना
इब्रत-डांट
ज़ूद-तुरंत
अब्तर- नष्ट, मूल्यहीन
गोशा- कोना, एकांत
गमख़्वार- दिलासा देने वाला