Sunday, February 3, 2008

फिर वही शाम

वो एक शाम मेरे साथ बिताने आये है,
मेरी रूठी जिन्दगी को मना कर लाये हैं,

इस्तकबाल करूं तो लफ्जों का टोटा है,
क्या इल्म था ऐसा भी होता है,

बेपीर दर्द दे गया था,
दवा लाया है,
जमिन्दोज़ के खातिर,
हवा लाया है।

अब के सावन में
बूंदों में नयी बात होगी,
दिल बस तू सोच,
क्या खूबसूरत मुलाकात होगी,

मेरा हम्नफ्स मेरा हमराह,
मेरी जिन्दगी साथ है,
वही सालों पहले की रात है,


कुछ भी कर गुज़र जाऊं,
इस दो पल की मुलाकात के लिए,
दोस्तो मुझे मुबारक बाद दो
इस नयी शुरुआत के लिए.

कुछ असंभव भी

सफलता असफलता जब मुँह खोलती हैं,
कुछ कटु, कुछ मधुर बोलती हैं,

समर्थ और असफल की वाणी
समान
सब संभव है,

यह तो प्रयास की सार्थकता।

असमर्थता को मैंने भी जाना है,
मेरी अंतरंग मित्र है,
मुझे मुँह चिढाती,
पर बरसों से साथ है।

मुझे रुलाती भी है,
फिर सहलाती भी है,
रग रग दुखा कर,
मुस्कुराती भी है।

न बनने देतीं है,
न बिखरने देती है,

साहस भी लचीला हो चला,
न वो दुस्साहस बना,
न ही हुआ मैं निराश,

उम्मीद और नाउम्मीदी,
के झूले पे मैं झूलता रोज़,

तो मान लिया मैंने,
किस्मत भी है कुछ,

सब है संभव,
तो कुछ असंभव भी।

Friday, February 1, 2008

अनिंद्य

जब फूल से दो पंखुडियां नोच लीं,
चुप था कुछ न कहा,
फिर धीरे से मुस्कुरा के बोला,

सर्वस्व तुम्हे अर्पण,
तुम्ही मेरे ईश्वर,
मेरे माली थे तुम,

तुम्ही विनाशक,
तुम्हे देने में,
क्षोभ कैसा,

मैंने महक को जी भर,
मन में उतारा,

कहने लगा,
प्रेम से भी निहारो,
मुझे प्रियतम कहो,
प्राण कह कर पुकारो,

किसी मूर्ती चरणों में ही देना,
अगर फेकना भी,

इतना बड़ा ह्रदय,
पुष्प का?
तुमसे प्रेरणा ले कर,
पुष्प बना,
तुम्हारी समीक्षा करने को,
मेरे पास कसौटी नही।

तुम अनिंद्य.