Sunday, October 28, 2018

खाली पेट

खाली पेट नींद नही आती,
हमसे बे‍हतर जानेगा भी कौन?

फाके किए हैं महीनो हमने!!

रहने दो शर्मो हया और
ये हिजाबपारस्ती, झूठ है सब
कब्र मे गुज़ारी है जिंदगी,
पर्दानशीनो हमने...!

नखरे हैं सब, और शोखियाँ,
ये जो तुम्हारे मुश्किलों के जिक्र हैं,
कसौटियों पे शबें गुज़ारी,
नज़नीनो हमने....!

और फाके किए हैं,
महीनों हमने..I

Thursday, October 18, 2018

इलज़ाम

वक़्त का दरिया है
लोग हैं, यादें है, लहरें हैं..

उम्मीदों के समंदर है
वजहें हैं, जीत है, हारें हैं....
तन्हाईयाँ, इंतज़ार है....
अजीब से बादल हैं,
सिसकियाँ, खुशबुएँ,
ज़ख्म-ओ-मरहम हैं

माज़ी के तूफ़ान हैं
दरारें हैं दीवारें है
शबनम हैं शरारे हैं
दुनिया भर के दावे हैं
उनके हैं या तुम्हारे हैं...?

सुबह की मदहोशियाँ हैं,
के शाम की ललियाँ हैं,
जिंदगी हैं कि,
अंगारे हैं....!!

मैं ही भूखा नहीं,
रोटियों का मोहताज़,
करोड़ों बेचारे हैं...!!

इलज़ाम मोहताजों की 
हर खुदकुशी का,
तुम्हारे ही सर है,
जो उनके हिस्से से,
तुमने अपने घर,
सँवारे हैं........!!

दीमकों का राज

रक्तरंजित इतिहास दोहराता है,
खुद को आज में....!

हिन्द की संताने लड़-मर रही हैं,
दीमकों के राज में.....!

उद्योगपतियों का राग, बजट है,
लोकतंत्र के साज़ में.....!

बस्तर की अछूत लड़की की,
चीखो-पुकार दब गयी,
बंदूकों के अट्टहास में,
वर्दियों  की आवाज़ में.....!

पर असल कातिल हैं वो,
जो छुपे हैं, सफ़ेद कुर्तो,
और कारखानों की आड़ में....!

ऊंची हो गयी दहलीज़ न्याय की,
रोकड़े के चबूतरे आधार बन गए,
असर नहीं रहा अब,
गरीब की फरियाद में...!

हिचकियां

बड़ा अजीब लगता है,
जब हिचकियां आती हैं...!!

सोचता हूं,
उधर तुमको भी आती होंगी,
जब इधर हाल बुरा होता है,
मुफीद होता है,
सो जाना, या फिर,
बाहर निकाल जाना...!!!

वरना कमरे की चार दीवारें,
अपने जबड़े फाड़,
मुझे खाने को दौड़ती हैं...!!!

हां उधर तुमको भी अकेले में,
तकल्लुफ तो होता ही होगा.....!
दुनिया भर में,
दीवारें एक जैसी है....!!!

सुबह बेपनाह उनींदा,
जब दरवाज़ा खोलता हूं,
नाउम्मीदी का दरिया,
मेरे कमरे और मुझ में,
भर जाता है.....!!!

हालिया बशर

कूचे पे जमा हैं कुछ बशर,
सुना है,
इंसानी लहू के तलबगार है..!!
कह रहा था कोई,
गोया दिमागी बीमार हैं...!!!

जिनसे अकेले सबील पे,
इक कतरा ना पेश फरमाया गया,
खून बहाने को आए,
मिल के चार हैं..!!!

जिनके बुजुर्गों ने,
वतन की चादर बुनी,
वो आज,
मलाल ओ रंजिश के दस्तकार है..!!

नुक्कड़ की दुकानों पर,
मिलते थे शामो शहर जो दिल,
मर गए हैं,
वजह ये सियासती बदकार हैं..!!!

इस शहर की हवा की ताजगी भी,
मर गई बरसों पहले...!!

सुना है तुम्हारे शहर में भी,
पतझड़ बरकरार है..!!

तुम मुझ से,
जिरह कर निकले थे,
आज हमारे शहरों में भी,
आपसी तकरार है...!!