Thursday, October 18, 2018

इलज़ाम

वक़्त का दरिया है
लोग हैं, यादें है, लहरें हैं..

उम्मीदों के समंदर है
वजहें हैं, जीत है, हारें हैं....
तन्हाईयाँ, इंतज़ार है....
अजीब से बादल हैं,
सिसकियाँ, खुशबुएँ,
ज़ख्म-ओ-मरहम हैं

माज़ी के तूफ़ान हैं
दरारें हैं दीवारें है
शबनम हैं शरारे हैं
दुनिया भर के दावे हैं
उनके हैं या तुम्हारे हैं...?

सुबह की मदहोशियाँ हैं,
के शाम की ललियाँ हैं,
जिंदगी हैं कि,
अंगारे हैं....!!

मैं ही भूखा नहीं,
रोटियों का मोहताज़,
करोड़ों बेचारे हैं...!!

इलज़ाम मोहताजों की 
हर खुदकुशी का,
तुम्हारे ही सर है,
जो उनके हिस्से से,
तुमने अपने घर,
सँवारे हैं........!!

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