Wednesday, March 10, 2021

नया बहाना


इधर से खतों के सिलसिले रहना,
उधर से, जवाबों का ना आना..। 

तुम मुकर रहे हो, वादों से अपने,
हम भी ढूंढ रहें हैं, कोई नया बहाना..। 

उम्मीदों के घर ने, पते बदल लिए हैं,
तुम भी अब, इस तरफ नहीं आना..।

तंग आ गया हूँ, इस रिश्ते से मैं अब,
कभी एहसान, तो कभी हक जाताना..।

फलक पे खोल के, रख दो झूठ का पुलिंदा,
हर इक राज हम, फिर भी अंदर रखेंगे..।

सहरा रखो, रेत रखो, प्यासा रखो,
हम फिर भी दरम्या, समंदर रखेंगे..।

जो दिल कहे, सब कर लेना,
वक़्त का लेकिन, एहतराम करना..। 

दुश्मन भी मजबूरन करे तारीफ,
कुछ ऐसा काम करना..। 

जाम और साकी का, इंतजाम करना..।
देखो हमारे साथ, आएगा सैलाब ए अश्क भी,
तो कुछ रुमालो का, भी इंतजाम करना..।

नजरंदाजी, तुम्हारी ना होती तो,
मरहम, लगा रहे होते आज वो,
जख्म पे नमक छिड़कने वालों का,
अब पहले एहतराम करना..। 

मैं रोया नहीं, पत्थर ना समझो,
आँखों के सूखे दरिया को,
हमारी नजर से देखने का काम करना..। 

बाजी लगाओ, इश्क की हमसे,
हिजर मे हम, जिस्म को जमी कर देंगे,
गर तुम रूह को आसमान करना..।

मेरे वजूद के चमन मे,
रिश्तों के दरख्त उगते हैं,
हसरतें मेरी रूहानी हैं तो,
मुझ पे अपने पैसे जाया मत करना..। 

कब बीत जाते हैं सब मौसम,
परिंदों को पता नहीं चलता,
वक़्त रहते लौट आना घर,
उम्र परदेस मे जाया मत करना..।


मुकर - ignore/avoid
फलक - sky
पुलिंदा - bag
सहरा - desert
दरम्या - in middle
एहतराम - respect
साकी - bartender
सैलाब ए अश्क - flood of tears
नजरंदाजी - ignorance
मरहम - ointment
हिजर - separation
वजूद - existance
चमन - garden/area/environment
दरख्त - tree/plants
हसरतें - desires
रूहानी - spiritual

Sunday, March 7, 2021

शिकस्त

 मुझे अंजाम मे,

“हमारी” शिकस्त दिख रही है,

तो ज़रा बता हमारा....

आगाज़ क्या है..........?

 

खिलखिलाहट में,

अब भी वो मोती हैं,

पर नज़रें चुराने का अंदाज़ जुदा है,

सब न बता, पर इतना तो बता,

आखिर ये अंदाज़ क्या है......?

 

हमराज़ मान के तुझको,

बाँट ली जिन्दगी अपनी,

बस इतना बता.......

तेरे सीने दबा वो एक,

राज़ क्या है.........?

 

मेरा दर्द न पंहुचा,

मेरी आह न पहुंची तुझ तक,

तो वो चीख ही क्या,

वो आवाज़ क्या है.........?

 

जो है ये सब तो देख,

मैं अपनी शामों को,

पैमानों में घोल के पी रहा हूँ...!

 

मोहब्ब्बत में तो,

सब ही होते हैं बर्बाद,

क्या फ़कीर और,

फिर सरताज क्या है.........?

 

 

हद

कभी तूने सुना,

कभी अनसुना कर दिया,

हाले दिल मैंने यूं,

बयां किया तो बहुत.......

 

जान निकल रही है,

जब जर्रा जर्रा,

जिंदगी की अहमियत,

खुद की कीमत, समझा हूँ,

यूं मैं जिया तो बहुत.....

 

प्यास प्यार की थी,

पर हिस्से अश्क ही पड़े मेरे,

घूँट घूँट, मैंने दर्द,

यूं पिया तो बहुत............

 

तेरा एहसान,

मेरे हर करम पे अब भी भारी है,

फ़र्ज़ अदा मैंने किया तो बहुत.......

 

उम्र कम पड रही है,

और तेरे साथ के पल,

नाकाफी हैं,

यूं जिन्दगी ने जीने की खातिर,

दिया तो बहुत.................

 

घुट घुट के जीना क्या होता है,

तुमने सिखा दिया,

मैंने भी हर,

सफ्हे पे गौर किया तो बहुत......

 

घूँट घूँट यूं दर्द,

मैंने पिया तो बहुत...

बहुत कुछ बाकी रहा फिर भी,

तेरे साथ मैं, यूं जिया तो बहुत............

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