Saturday, March 7, 2015

बाशिंदा शहरी, किसान और खुदा

आँखों में लाल डोरों संग,
नमी है बहुत,
गोया रोया बहुत है....

रात ओले पड़े थे,
अब की फसल में
रामू ने खोया बहुत है...

इधर माहौल ही जुदा है,
बहते रहे जाम पे जाम,
इसकी आँखों में भी लाल डोरे
गोया बाशिंदा शहरी
सोया बहुत है...।

इधर खुलीं बियर की बोतलें
उधर टूटे आँखों के बाँध
ऐ खुदा जाती सर्दी में
तूने जमी को
भिगोया बहुत है