कभी थकान भरी निराशा को,
साथ लेकर,
हदों के पार जाने की कोशिश ......!
ये जो तुम मिलती हो मुझसे,
शाम की उदास लहरों की तरह ......!
जैसे सहला रहे हो,
ज़ख्मो को आहिस्ता ....!
कभी जहां भर की ख़ुशी को,
खुद में समेटे,
जोश से लबरेज़,
लिपट जाती हो मुझसे ........!
मुझे झरने पे उछलती,
पानी की बूंदे याद आती हैं,
जब भी कभी तुम आती हो,
सर्द एहसास बन कर ...........!
बैठ जाती हो कभी यूं चुप हो कर,
कि समेट लेती हो शाम की,
सारी लाली अपने आँचल में ..........!
और मेरा अस्तित्व,
रंगहीन लगता है मुझे ........!
देखो तुम ही तो,
सारा संसार हो ..........!