तू ही किनारे पे बैठ रोया होगा..............
नम है सांस मेरी बेहिसाब,
तूने ही अपना दामन,
अश्कों से भिगोया होगा..........
मेरे ख़त को उठा कर,
पढता रहा होगा,
फिर कश्ती बना,
छोड़ दिया होगा लहरों पे.....
परेशां हो कर खुद ही उसे,
अपने हाथों से डुबोया होगा......
समंदर खारा है आज,
तू ही किनारे पे बैठ रोया होगा..............
दर्द रिसता होगा हर धड़कन में,
जख्म भरते नहीं इश्क के कभी....
कहाँ तू भी रात, सुकून से सोया होगा.......
मेरा तो दामन ही तार तार था,
मेरे हिस्से के ज़ख्मों को भी,
बाद मेरे तूने ही संजोया होगा...........
समंदर खारा है आज,
तू ही किनारे पे बैठ रोया होगा..............
न ही नूर-ऐ-इलाही मयस्सर,
न ही इश्क-ऐ-पाक,
कौन बदनसीब, मुझ सा गोया होगा.........