एक पत्ता टूट कर,
शोर मचाता चला जाता है,
तेज़ बहती हवा के संग.....
खुश, इठलाता..........
सोचता.........
फिर कोई नया उग ही आएगा,
ये डालियाँ, यूँ ही,
वीरान तो न रहेंगी.......
पर ये निशाँ छोड़ गया है जो,
सवाल बन माथे पे लगा है........
कल को लोगों के सवालों का,
सबब बन जाएगा......
जुदा हो के भी,
कितना जुदा हो पायेगा,
रंग बदल कर हो जाएगा पीला,
पर क्या पहचान बदल पायेगा....
उसको जिद है, तन्हा रहने की.......
कोई जा कर कह दे,
दरख्त से टूट कर पत्ते,
ज्यादा जिया नही करते..........
बाद मरने के भी दुनिया,
पहचान लिया करती है.......
एक गुजारिश है,
एक पतझड़ और साथ गुजार ले.......
मुझे फ़िक्र है तेरी बहुत.............