Thursday, October 18, 2018

हालिया बशर

कूचे पे जमा हैं कुछ बशर,
सुना है,
इंसानी लहू के तलबगार है..!!
कह रहा था कोई,
गोया दिमागी बीमार हैं...!!!

जिनसे अकेले सबील पे,
इक कतरा ना पेश फरमाया गया,
खून बहाने को आए,
मिल के चार हैं..!!!

जिनके बुजुर्गों ने,
वतन की चादर बुनी,
वो आज,
मलाल ओ रंजिश के दस्तकार है..!!

नुक्कड़ की दुकानों पर,
मिलते थे शामो शहर जो दिल,
मर गए हैं,
वजह ये सियासती बदकार हैं..!!!

इस शहर की हवा की ताजगी भी,
मर गई बरसों पहले...!!

सुना है तुम्हारे शहर में भी,
पतझड़ बरकरार है..!!

तुम मुझ से,
जिरह कर निकले थे,
आज हमारे शहरों में भी,
आपसी तकरार है...!!

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