Thursday, November 23, 2017

सम्पूर्ण हूँ मैं

भूख नही है, प्रेम पाश है तुम्हारा,
जो हर दोपहर, कढ़ी की सोंधी खुशबू बन,
खींच लेता है मुझे घर के जानिब,
मैं सम्मोहित सा, खिंचा आता हूँ..!!!

माया हो कर खुद भी,
तुमने जन्मी है एक और माया,
में विरक्त रह भी कैसे पाता,
तो अब माया पाश में बंधा हूँ तुम्हारे...!!

अनमना था, निष्पक्ष था मैं,
पर प्रेम इतना भारी होगा
ये पता न था।
झुक गया अस्तित्व पूरा
तुम्हारी ओर, और तब मैंने जाना
सन्यास बेमानी है।

कदाचित ये विचित्र है,
की माया के आसक्त मैं,
प्रवाह में बहता हूँ,
तुम्हारे प्रभाव में
रहता हूँ

ये संयोग सुखद है
मेरा इच्छित है,
अब और कोई आकांक्षा नही
सम्पूर्ण हूँ मैं।


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