रक्तरंजित इतिहास दोहराता है,
खुद को आज में....!
हिन्द की संताने लड़-मर रही हैं,
दीमकों के राज में.....!
उद्योगपतियों का राग, बजट है,
लोकतंत्र के साज़ में.....!
बस्तर की अछूत लड़की की,
चीखो-पुकार दब गयी,
बंदूकों के अट्टहास में,
वर्दियों की आवाज़ में.....!
पर असल कातिल हैं वो,
जो छुपे हैं, सफ़ेद कुर्तो,
और कारखानों की आड़ में....!
ऊंची हो गयी दहलीज़ न्याय की,
रोकड़े के चबूतरे आधार बन गए,
असर नहीं रहा अब,
गरीब की फरियाद में...!
खुद को आज में....!
हिन्द की संताने लड़-मर रही हैं,
दीमकों के राज में.....!
उद्योगपतियों का राग, बजट है,
लोकतंत्र के साज़ में.....!
बस्तर की अछूत लड़की की,
चीखो-पुकार दब गयी,
बंदूकों के अट्टहास में,
वर्दियों की आवाज़ में.....!
पर असल कातिल हैं वो,
जो छुपे हैं, सफ़ेद कुर्तो,
और कारखानों की आड़ में....!
ऊंची हो गयी दहलीज़ न्याय की,
रोकड़े के चबूतरे आधार बन गए,
असर नहीं रहा अब,
गरीब की फरियाद में...!
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