जानता हूँ, आँसुओं की ख़ास,
क़ीमत नहीं कोई,
तो मुस्कुराता रहा.....!!!
कराहना मेरा,
क्या भाता किसी को?
दर्द रहा तो भी,
गुनगुनाता रहा..!!!!
वो घर जला गए मेरा,
अपने उजाले की ख़ातिर,
पर हमारी उम्मीद का,
एक दिया,
ना जाने कैसे,
टिमटिमाता रहा...!!!
मातमपुर्सी की आवाज़ें,
यूँ तो हमें अपने गुज़रने की,
ख़बर दे गयीं,
उस कफ़न को,
कुछ और ही मुहब्बत थी,
के पूरा मरने ना दिया,
पैरों से लग के,
ना जाने क्यों,
फड़फड़ाता रहा...!!!
ना ख़ुद को क़रार आया उसे,
ना हमे ही मुकम्मल होने दिया,
सनम जो मौसम सा हुआ,
आता रहा जाता रहा...!!
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