लबादा ओढ़ के चलता हूँ
मुस्कुराहटों का
कहीं किसी को हालत मेरी
'उसकी' कारगुज़ारी न लगे,
बंटा देता हूँ हाथ
के किसी को भी
उसका दर्द भारी न लगे,
लाओ दे दो अपनी मुश्किल
और मैं अपना लूं इस तरह
कि अब तुम्हारी न लगे,
कोई हारा है इस कदर
की मौत का गुलाम है, फिर भी..!
कटी है जिसकी सारी जुए में
वो ज़िन्दगी का जुआरी न लगे..!
दुआ में अब यही
की दिल मिले सबको
बस किसी को दिल की
बीमारी न लगे..!
No comments:
Post a Comment