जाने किस मिट्टी के बने थे,
अंधेरी वतन की रात को,
नई सहर कर गए..!!
वतन वाले सुकूं से पहुंचे घर,
जब शहीद शमशान भी,
रोशन कर गए..!!
आईं जब गोलियों की आवाज़ें,
सफेद कुर्तों वाले, छुप गए,
सबसे पहले डर गए..!!
सिक्केबाज़ों की साजिशों के,
शिकार हैं, जान कर भी,
वो हर हद से गुज़र गए...!!
यहां बदल गए थे घर, और लोग,
जब वो वर्दियों के लोग,
लौट अपने शहर गए..!!
बड़े एहसान फरामोश निकले,
ये ऊंचे लोग, जब आन पड़ी,
चालाकी से मुकर गए..!!
ये फौज़ प्यादों से ज्यादा नहीं,
इन फरामोशों की नजर,
देखी जब हकीकत तो
मेरे खयाल तक ठहर गए..!!
हमारी गफलतों ठीकरे,
खुद ले लिए, आज़ादी,
हर सुबह तुम्हारी नज़र कर गए....!!
जिस्म इक को बचाने की,
जद्दोजहद थी बड़ी,
बच भी गया, बदले में,
लेकिन लाखों सर गए.....!!
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