सैकड़ों हज़ारों,
बेघर चले आते हैं,
इन गली कूचों में ही,
कहीं समा जाते हैं....!!
गाँवों को समूचा,
निगल रहे हैं...!
हर रोज़, शहर,
दलदल हो रहे हैं...!!
बेघर चले आते हैं,
इन गली कूचों में ही,
कहीं समा जाते हैं....!!
गाँवों को समूचा,
निगल रहे हैं...!
हर रोज़, शहर,
दलदल हो रहे हैं...!!
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