Tuesday, June 18, 2019

हाल-ऐ-शब

तेरी यादों को,
अक्सर अशआर बना कर,
कागज़ में लपेट,
डायरी में बंद कर देता हूँ..!!

सोचता हूँ अक्सर,
के वो ख़याल,
जिसे दफना दिया,
दोबारा पेशतर न होगा..!!

लेकिन चौराहे के खंभे सा,
रोज़ मेरे वजूद के आगे,
खड़ा हो कर,
तेरी वफाओं का सिला मांगता है..!!

मैं नजर झुकाये,
बच के निकलने की,
कोशिश में रोज़,
उलझ जाता हूँ,
तेरी यादों की डयोढ़ी पे..!!

फिर ये लम्हे,
सर पटक पटक के,
मातम करते हैं,
तेरे मेरे किस्से का..!!

और हां, तेरी यादों की,
मजलिस भी बैठती है,
हर रोज़, मेरे संग दीवान पे,
तो.. ये हाल है मेरी रातों का..!!

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