Tuesday, June 11, 2019

मंज़िल

आराम लेने नही देता दिल,
इसे जीने का जतन बहुत है,

तेरे एहसान कैसे ओढूं बता?
ये झीना पैरहन भी बहुत है..!!

उतार ले इसे अब जिस्म से,
इस रूह का वजन बहुत है..!!

गुलशन की अब खाक ख्वाहिश?
कांटो का ये अंजुमन बहुत है..!!

बशर जाएगा भी कहाँ आखिर,
दो गज़ का वतन बहुत है..!!

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