ग़म-ऐ-दिल बेशक,
तुम्हारा, बड़ा है बहुत,
लेकिन कभी क्या,
किसी तंगहाल से मिले हो?
तलाशोगे, तो उसकी भूख में,
दर्द की नई गहरायी मिलेगी..!!
वो नट बन के पैदा न हुए,
न मजमगार थे उनके पुरखे,
ये करतब तो सब,
पेट की आग कराती है..!!
ढपली की थाप पे,
उसका राग नही है ये,
ये भूख का दर्द है,
जो तान बन के निकला..!!
मुरमुरे बेचना चाहा कब,
उम्र तो उसकी खाने की थी,
उनकी तंगहाली तो बस नतीजा है,
तलब तुम्हे ख़ज़ाने की थी..!!
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