खींच लेगा कोई इस कदर,
क्या कोई ऐसी भी वजह है?
सोचा न था नियत बदलेगी,
मिलने में रखा क्या है..?
अजीब सा हो रहा है कुछ,
न जाने आखिर क्या है..?
खुमार है जुल्फों का, और,
आंखों से नशा दिया क्या है..?
ईमान डगमगा रहा मेरा,
तुमने देखो किया क्या है..?
खूबसूरत लग रही है,
कमबख्त ये कैसी ख़ता है..?
अंजुमन, जानता हूँ, बेरंग मेरा,
तेरे नाम की होली में रंगा है..!!
दिल में खलबली भी मची है
कुछ न होगा ये भी पता है..!
होगी बस हकीकत पेश्तर,
और सब रंग उड़ जाएंगे,
चंद अगले रोज़ में यही बदा है..!!
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