Monday, September 27, 2021

कहां तक जाओगे 2

ये रिश्तों की पोटली,
ये नातों के तार,
ये उम्मीदों के महल
ये चाहतों के दयार

सम्हाले हुए हैं
हमने जैसे तैसे..!

ये तुम्हारी हसरतों के पुल
ये तुम्हारी उलझनों के बाम
ये चाहते बहुत सी
ये ख्वाहिशें तमाम

ये खयालों के दरख़्त
ये शिकवों के दरिया
ये उलझने तुम्हारी
ये शिकायतों का ज़रिया

सब सम्हाल रखा है हमने
इक अनचाही गांठ बन कर
वही गांठ जो खुल गई
तो सब बह जाएगा
फिसल जायेगा वक्त,
तुम्हारी मुट्ठी से,
सब धरा का धरा रह जायेगा.!

किसको कोसोगे?
क्या पछताओगे?
जब जहां चुक जायेगा?
बताओ, कहां जाओगे?

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