Wednesday, June 21, 2023

ठिकाने लगा है वो

 न जाने कितनी और,

सच्चाइयों से महरूम रहता,

ध्यान न देता के,

नजरें चुराने लगा है वो


बिस्तर पे सुबह,

सलवटें नही मिलती अब

बाहर कहीं तो

रात जाने लगा है वो


वो सुना देता है,

मैं मान जाता हूं

कैसे रोज नए,

बहाने बनाने लगा है वो


मुझसे दगा कर 

दर दर की ठोकरें खा रहा है

अब कहीं जा के

ठिकाने लगा है वो


संवार रहे थे

जो दो जहां उसका 

उन्ही हाथों से,

दामन बचाने लगा है वो


अब मान लूंगा ये बात

हां बदल गया वो

मुझे दर्द में देखा है

मुस्कुराने लगा है वो

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