ईदों में, होली दीवाली, गुलालों में,
ढोलक की थापों में, बिरहा आलापों में,
लोकतंत्र बैठता था चौपालों में....!
जनमानस के सदभाव में,
नफ़रत के अभाव में
विकास के उजालों में,
लोकतंत्र संसद में बैठता था,
विपक्ष के सवालों में....!!
हक लूटे, इमदाद लूटी,
घर लूटे, जायदाद लूटी
अब संसदीय गिद्धों की नजर है,
गरीब के निवालों पे...!!!
निचोड़ डाली,
आर्यावर्त की आबरू,
जला दीं फसलें,
अमन ओ आजादी की,
बस कुछ ही सालों में..!!!!
आज मोमबत्तियां लिए,
सड़कों पे खड़ा, मजबूर वो,
जो लोकतंत्र बैठता था संसद में,
विपक्ष के सवालों में..!!!!!
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