Monday, July 12, 2021

झूठे हैं लोग

दिल पे रख लेते हैं पत्थर,
हंस लेते हैं
जो अंदर से टूटे हैं लोग।

मुस्कुराहटों के मुखौटे पहने,
बिलखते, झूठे हैं लोग।

ये अदाओं की कारीगरी,
सब को बराबर आती है,
अनूठे हैं लोग।

बाहर कुछ और,
अंदर कुछ और,
झूठे हैं लोग।

मेरे जनाजे पे,
छाई है खामोशी,
शायद रूठे हैं लोग।

न जाने कहां गए,
वक्त के साथ साथ
बहुत छूटे हैं लोग।

कुछ डूब गए
दरिया - ए - गम में,
कुछ अछूते हैं लोग।

जान गए कीमत,
बाद मुद्दत के,
जनाजा निकलने को है,
अब मुझे छूते हैं लोग।

कैसे मुस्कुरा लेते हैं
रोते रोते,
बहुत झूठे हैं लोग।

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