Thursday, January 10, 2008

मैं समंदर हूँ.............


रोज रोज चले आते हैं तूफा मुझ तक,
तो क्या कुसूर उनका,
गुनहगार तो मैं............
समंदर हूँ......

शौक क्या, और क्या मजबूरी,
गहराइयों में तो उतरना ही था,
तो अब मैं.....
समंदर हूँ..........

लहरें भी दिखें और,
जुम्बिश भी न हो,
तो गहरा हूँ अब....
मैं समंदर हूँ.............

एक कतरे तक की जगह न थी,
अब सूरज भी बुझते हैं मुझमे,
मैं अब समंदर हूँ............

कोई तो कश्ती साहिल पे आएगी,
कुछ तो मोती उगेंगे,
तो बस मैं........
समंदर हूँ.........

मुंदी आंखें है,
गोया बर्फ की पतली चादर,
इनके नीचे और बहुत अंदर
में समंदर हूँ...!!!

संभल के पांव रखना,
डूब जाना न कहीं,
बड़ा शोख सा मंज़र हूँ,

थाह न पाओगे,
मेरे इश्क़ की,
इतना गहरा गया हूँ,
के अब समंदर हूँ,

सिर्फ मुस्कुराहट ही,
रूबरू होगी अब,
हद-ऐ-दर्द समेटे
कलंदर हूँ,

हो डूबने का शौक,
तो समा जाओ बाहों में,
पुरकशिश बा-जान, अंदर हूँ,
मैं समंदर हूँ...!!!

ज़माने भर के और अपने,
अश्क पी कर,
कड़वा हूँ, खारा हूँ...........
अब समंदर हूँ.............

गहरा हूँ, दर्द हूँ, पर अपने ही अन्दर हूँ..................
मैं समंदर हूँ.............

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