Thursday, January 10, 2008

कुछ नया पकना है.......

स्मृति पात्र मैला हो चला,
तो एक दिन,
विस्मृति के नखरों से खुरचने लगा.....

भूत की घटनाएं,
पपडी बन निकलने लगीं...

एक सूखा सा विश्वास,
चटक कर टूटा,
अलग हो गया...

पुराना प्रेम कोई, जंग लगा,
आज न रहा पात्र में....

गलती पिघलती बासी भावनाओं को,
अलग होना पड़ा,
पात्र को साफ होना पड़ा.......

कुछ नया पकना है.............

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