सूरज को कभी बे रौनक न देखा,
चाँद को तनहा नही,
फिर ये उजाला क्यों अँधेरे की पलकों से खेला
क्यों मेरी रात इतनी अकेली,
क्यों आसमां पे चाँद अकेला,
जो कल तक मेरी ख़ुशी में ही थी तेरी ख़ुशी.....
तो क्या वजह तेरी बेरुखी की.....
जिन पे हम मिल कर कुर्बान हुए,
वो नजारे कहाँ गए........
चाँद को तन्हा छोड़
सितारे कहाँ गए.....
आ भी जा
कहीं ऐसा न हो के......
जिंदगी ही ग़ज़ल हो जाये
मेरा वजूद, मेरा आज,
तेरे लिए, गुजरा हुआ कल हो जाये..........
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