सुख दुःख भरा मन में,
भावनाएं बना और छलका,
फिर स्याही बना और बिखरा,
छींटे अक्षर बने,
पन्नों पे असर छोड़ चले,
विचारों ने रेखाएं खींचीं,
तो मनस्थिति की ज्यामिति उभरी.........
हर पद्य का अपना स्वभाव,
किसी न किसी का संबल बनता,
यूँ लचीला की,
हर क्षण रुप बदले,
पारखी की दृष्टि के समानांतर.........
रचनाएं खंगालते लोग,
खुद को ढूँढ कर निकालते लोग........
आमने सामने बैठ,
कुछ पहेलियाँ बुनते,
कुछ मौन हो, सुनते......
प्रकृति जैसा अनंत विस्तार,
विचित्र, सम्मोहक, लुभावना,
कविता का संसार..................
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