Saturday, June 4, 2016

ऐसी रातों से दिल भर गया

ये ज़िन्दगी भी
गर रात भर की हुआ करती..
हर दुसरे रोज़
सुबह होती..
यूं स्याह अँधेरे न रेंगते
मेरे वजूद के इर्द गिर्द..

ना आये ख्वाब
तो भी क्या बात थी?
जिंदगी यूं भी
तो बसर हो सकती है

अंगड़ाई होती के
गोया आज़ादी ही होती
सुबह होती के इंतज़ार होता
आती ही होगी

ज़िम्मा होता भी
तो ज़र्रा ज़र्रा
फ़िक्र होती तो
कतरा कतरा...
होती तो बस इतनी ही होती..

मेरे पैमाने भरने का
सबब भी क्या...?
ये बेहिसाब रातों का नाश
और मयनोशी
मेरी तो फितरत न थी

ऐसी रातों से
दिल भर गया....!

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